ध्यान क्या है, सिर्फ एक मिनट में समझिए ध्यान का पहला सूत्र

ओशो ध्यान केंद्र, पटना के प्रमुख स्वामी आनंद सुरेंद्र ने सरल शब्दों में ध्यान का पहला सूत्र समझाया है। एक मिनट में समझिए। जानिए, प्रेम और करुणा की शक्ति।

बहुत लोग समझते हैं कि ध्यान कोई जादू-टोना है या किसी धार्मिक कर्मकांड से इसका संबंध है। ऐसा बिल्कुल ही नहीं है। स्वामी आनंद सुरेंद्र कहते हैं-

ध्यान का पहला सूत्र है वर्तमान में जीना।
हर पल यह होश बना रहे कि आगे भी कुछ नहीं है और पीछे भी कुछ नहीं है। जो जा चुका है, वह जा चुका है,और जो अभी आया ही नहीं है उसकी क्या फिक्र करनी। तो यह भाव दशा हर पल जीवन में बना रहे, तो ही ध्यान के जगत में हमारा प्रवेश हो सकता है।
फिर जीवन में वास्तविक सुख और आनंद का आविर्भाव होता है। वही जीवन जिसमे रंगो का अभाव था, उसमें इंद्रधनुष के सभी रंग समाहित होने लगते हैं। हर क्षण,चाहे जो भी करते हों,यह बोध बना रहे कि यही कार्य मेरा अभी सबकुछ है,छोटे से छोटे काम में भी और बड़े से बड़े कार्य में भी।भोजन करते समय भी,किसी से बात करते समय भी,TV देखते समय भी, चाहे कोई भी काम करते हों, हर क्षण। फिर धीरे धीरे ध्यान के अंतर्जगत में हमारा प्रवेश होने लगता है।
प्रारंभ में कठिन तो लगेगा,पर सतत प्रयास से, एक दिन असंभव भी संभव लगने लगता है। यह पहला कदम है,और जिसका पहला कदम सत्य के मार्ग पर उठ गया। निश्चित ही,एक दिन ,वह ध्यान की धारा में प्रवेश कर जाएगा ही।

ओशो कहते हैं-जब लोग आकर मुझसे पूछते हैं, ‘ध्यान कैसे करें?’ मैं उन्हें कहता हूं, ‘यह पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है कि ध्यान कैसे करें, बस पूछें कि कैसे स्वयं को खाली रखें। ध्यान सहज घटता है। बस पूछो कि कैसे खाली रहना है, बस इतना ही। यह ध्यान की कुल तरकीब है – कैसे खाली रहना है। तब आप कुछ भी नहीं करेंगे और ध्यान का फूल खिलेगा।

स्वामी आनंद सुरेंद्र जीवन की परेशानियों का हल भी बताते हैं। उसका आधार भी कोई कर्मकांड नहीं होता कि शनिवार को ये करिए और मंगलवार को वह करिए। वे प्रेम और करुणा के आधार पर ही समस्याओं का हल बताते हैं। इस कार्यक्रम का नाम मिस्ट्री ऑफ लाइफ है।

स्वामी आनंद सुरेंद्र कहते हैं जिस तरह से प्रकृति में जीवंतता के लिए,परिवर्तन,उसका एक स्वभाव है उसी तरह से,हमारे ‘बाह्य एवम अन्तर्जगत’ में भी,समय के साथ ‘बदलाव एवम संतुलन’ आवश्यक है। जीवन बहुआयामी है,उसमे इन्द्रधनुष के सभी रंग समाहित हैं। जरुरत है, जीवन के अनसुलझे पहलु को,ठीक ढंग से समझने की,और फिर उसे जीने की। वर्तमान सामाजिक परिवेश में,विषम परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए अनमोल जीवन को व्यर्थ में नष्ट करने से बेहतर है,कि वैसे व्यक्ति से,जिनके प्रति हमारी निष्ठा हो,उनसे सही परामर्श लेकर, अपने जीवन को सहज,सुंदर और सुखमय बना लें।

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By Editor