फेक न्यूज सरगना : 20 साल तक अंदर रखने का हो चुका इंतजाम

बिहार पुलिस ने फेक न्यूज सरगना मनीष की घेराबंदी करने में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया, ताकि उसके बच निकलने के लिए कोई छेद न छूटे।

इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम

किसी अपराधी को जल्द गिरफ्तार कर लेना ही काफी नहीं होता है, बल्कि उसकी गिरफ्तारी से पहले ऐसी तैयारी जरूरी है, ताकि कोर्ट में उसकी बोलती बंद रहे। उसके जेल से जल्द छूटने या सजा से बच निकलने का कोई रास्ता नहीं रहे। बिहार पुलिस ने फेक न्यूज सरगना मनीष कश्यप उर्फ त्रिपुरारी तिवारी की घेरेबंदी इस प्रकार की है कि उसे सात साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। उस पर बिहार में दस मुकदमे हैं और तमिलनाडु में छह मुकदमे। तमिलनाडु पुलिस अभी बिहार में ही है। अभी तो उसका हिसाब बाकी है।

बिहार पुलिस ने ऐसी घेरेबंदी की कि मनीष को आत्मसमर्पण करना पड़ा। उसने बेतिया के जगदीशपुर थान में सरेंडर किया। आइए जानते हैं पुलिस ने उसकी घेरेबंदी किस प्रकार की।

बिहार पुलिस ने तमिलनाडु और बिहार के बीच तनाव फैलाने के मकसद से झूठा और उन्माद फैलाने वाला वीडियो बनाने, उसे प्रचारित करने वाले मनीष कश्यप की घेरेबंदी मार्च के पहले हफ्ते से शुरू की। पहले सनहा दायर हुआ फिर 6 मार्च को पहली एफआईआर दर्ज की गई। मनीष ने अपनी गिरफ्तारी की फेक खबर प्रचारित की तो 8 मार्च को दूसरी एफआईआर दर्ज की गई।

मामला बेहद गंभीर था इसलिए बिहार पुलिस ने इसके लिए एसआईटी का गठन किया। एसआईटी के नेतृत्व की जिम्मेदारी आर्थिक अपराध इकाई के एसपी सुशील कुमार को दिया गया। सुशील कुमार सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिये किए जानेवाले क्राइम की गहरी समझ रखते हैं। वे किसी राजनीतिक दवाब में नहीं आने के लिए भी जाने जाते हैं। मनीष के भाजपा के बड़े नेताओं से संबंध रहे हैं और खुद भाजपा पूरे मामले में सक्रिय थी, लेकिन कोई दबाव काम नहीं आया।

आईपीएस अधिकारी सुशील कुमार के नेतृत्व में बनी एसआईटी में डीएसपी स्तर के चार अधिकारी थे। इसके अलावा कई पुलिसकर्मी थे। मनीष की घेरेबंदी के लिए चार छापामार दस्ते बनाए गए। बिहार के अलावा दिल्ली, हरियाणा तथा चंडीगढ़ में उस पर विशेष नजर रखी जा रही थी।

इधर आर्थिक अपराध इकाई ने मनीष के खाते को खंगाला तो मालूम हुआ उसके खातों में 43 लाख रुपए जमा हैं। पहले उसके बैंक खाते को सीज कराया गया। उस पर आर्थिक अपराध के मामले भी दर्ज किए गए। मनीष के लेन-देन में कई अनियमितताएं मिली हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि जिस मामले में सात साल से ज्यादा की सजा हो सकती है, उसमें पहले नोटिस दिया जाना चाहिए। बिहार पुलिस ने मनीष को नोटिस दिया। नोटिस उसके चाचा ने रिसीव किया।

बेतिया में मनीष के खिलाफ एक पुराना मामला था, जिसमें वह फरार था। इस मामले में कोर्ट से कुर्की-जब्ती का आदेश लिया गया। मनीष को मालूम हुआ तो वह बेतिया कोर्ट में सरेंडर की तैयारी करने लगा। पुलिस ने कोर्ट के बाहर घेरेबंदी कर दी। तब कोई उपाय नहीं देखकर उसने जगदीशपुर थाने में सरेंडर किया। जानकार माव रहे हैं कि बिहार पुलिस ने जिस प्रकार नियमों का पालन करते हुए, साक्ष्य जुटाते हुए मनीष को अंदर किया है, तो उसके बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। यह भी तय है कि बिहार के बाद मनीष को तमिलनाडु के जेल की हवा खानी होगी।

आईपीएस अधिकारी सुशील कुमार जिनके नेतृत्व में बनी एसआईटी

उन्माद फैलाने वाले मनीष का जेल जाना, उन लोगों के लिए सबक है, जो अपने स्वार्थ में, किसी नफरती राजनीति के स्वार्थ में समाज में हिंसा फैलाने तक को तैयार रहते हैं। सच है, झूठ की उम्र लंबी नहीं होती और उसका अंतिम ठिकाना जेल ही होता है।

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