गोपालगंज, मोकामा हारने पर भाजपा नेताओं का क्या होगा भविष्य

अगर गोपालगंज, मोकामा उपचुनाव भाजपा हार गई, तो तीन सवाल खड़े होंगे। सुशील मोदी व अन्य नेताओं का क्या होगा, क्या ध्रुवीकरण वाले नेताओं की पूछ बढ़गी…।

कुमार अनिल

बिहार में 3 नवंबर को गोपालगंज और मोकामा में उपचुनाव है। अगर दोनों सीट भाजपा हार गई, तो तीन सवाल खड़े होंगे। पहला, सुशील कुमार मोदी और आज के बिहार भाजपा के अन्य नेताओं का भविष्य क्या होगा? दूसरा सवाल यह है कि दोनों सीट हारने पर भाजपा के बिहार मॉडल का क्या होगा, क्या बिहार भाजपा यूपी-गुजरात मॉडल की तरफ बढ़ेगी? और तीसरा सवाल यह है कि दोनों सीट हारने पर क्या सुशील मोदी जैसे नेताओं की जगह गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की पूछ बढ़ेगी, जो हिंदुत्व की राजनीति पर जोर देते रहे हैं? मालूम हो कि अमित शाह के बिहार दौरे से पहले गिरिराज सिंह जनसंख्या नियंत्रण कानून का मुद्दा उठा चुके हैं।

मोकामा सीट हारने पर बिहार भाजपा के नेता केंद्रीय नेतृत्व को समझा सकते हैं कि वहां भाजपा कभी जीती नहीं। लेकिन गोपालगंज हारने पर केंद्रीय नेतृत्व को समझाना मुश्किल होगा। वहां तो 17 वर्ष से भाजपा का कब्जा है। उसे पार्टी गढ़ मानती है। दोनों सीटों पर हार से सांसद सुशील मोदी और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल दोनों का भविष्य संकट में होगा। संकट में इसलिए क्योंकि दोनों सीट हारना केंद्रीय नेतृत्व के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से खतरे की घंटी होगी। ऐसे में सुशील मोदी के केंद्रीय मंत्री बनने का सपना बिखर सकता है और जायसवाल की कुर्सी भी खतरे में पड़ सकती है।

बिहार भाजपा दशकों से नीतीश कुमार के साथ रहने के कारण हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति करने से बचती रही है। कभी किसी नेता ने कुछ कहा भी तो नीतीश ने खारिज कर दिया। गुजरात में जिस तरह बिलकिस बानो के रेपिस्टों के बचाव में भाजपा के विधायक तक उतरे, वैसा बिहार में करना मुश्किल है। यूपी में खुलेआम 80-20 की बात कह कर ध्रुवीकरण की कोशिश की गई। बिहार भाजपा अमूमन हेल्थ, लॉ एंड आर्डर आदि जनता के मुद्दों पर बोलती रही है। दोनों सीट हारने पर बिहार भाजपा मॉडल गुजरात और यूपी मॉडल की तरफ बढ़ सकती है।

और तीसरी बात यह कि दोनों सीट हारने पर गिरिराज सिंह जैसे हिंदुत्ववादी नेताओं की पूछ बढ़ सकती है। जनसंख्या नियंत्रण कानून से लेकर बांग्लादेशी घुसपैठियों का सवाल जोर पकड़ सकता है।

हालांकि भाजपा के अधिक दक्षिणपंथी रुख अपनाने पर पिछड़ी जातियों के दूर जाने का खतरा है। दलित भी छिटकेंगे। हिंदुत्व पर जोर से अतिपिछड़े समुदाय भी खुद को कमजोर महसूस करेंगे। बिहार में सामाजिक न्याय की धारा मजबूत रही है। भाजपा का कोर वेटर आरक्षण विरोधी है, यह सभी जानते हैं। बिहारी समाज का मिजाज यूपी और गुजरात से अलग है। इसलिए केजरीवाल भी यहां आ जाएं, तो वे रुपए पर लक्ष्मी-गणेश के फोटो की मांग नहीं कर सकेंगे। देखना है, गोपालगंज और मोकामा का रिजल्ट क्या होता है। अगर भाजपा दोनों हारी, तो उसके अंदर खलबली मचना और बदलाव की संभावना ज्यादा है।

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