गुजरात चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, भाजपा के पारम्परिक गढ़ में राहलु के प्रति उमड़ती सहानुभूति से भाजपा खेमे में बेचैनी बढ़ गयी है. इससे निपटने के लिए अमितशाह की कोई रणनीति कामयाब नहीं हो पा रही है.

पंजाब केसरी डॉट इन की खबर में बताया गया है कि अपने दौरे के आखिरी चरण में राहुल कुछ दिन पहले जब मेहसाणा पहुंचे तो उनसे मिलने के लिए सड़क पर ऐसी भीड़ जुटी, जिसका अंदाजा कांग्रेसी नेताओं को भी नहीं था। सबसे ज्यादा अचंभे की बात यह है कि जब राहुल का मेहसाणा के लोगों के बीच घिरे होने का वीडियो वायरल हुआ तो खुद प्रधानमंत्री के स्तर पर गुजरात के नेताओं से बातचीत हुई।

आरएसएस की अंदुरूनी रिपोर्ट से भी भाजपा में मायूसी
भाजपा के करीबी सूत्रों का कहना है कि हर स्तर पर प्रधानमंत्री गुजरात की जमीनी हकीकत जानना चाहते हैं। गुजरात को लेकर संघ से आई रिपोर्ट भी अच्छी नहीं है लेकिन भाजपा के सांसद, मंत्री और प्रदेश पदाधिकारी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनका जनाधार खिसका है। मेहसाणा भाजपा का गढ़ माना जाता था। जब पूरे गुजरात में कांग्रेस की आंधी चलती थी तब भी मेहसाणा की सीट भाजपा ने जीती है। यहां से लगातार भाजपा के सांसद और विधायक जीतते आए हैं लेकिन ऐसी जगह पर जब राहुल को देखने हजारों लोग आए तो चिंता सिर्फ अहमदाबाद में नहीं दिल्ली में भी होगी। सूत्रों का कहना है कि मेहसाणा में जो हुआ उसकी रिपोर्ट अमित शाह ने पार्टी के जिलाध्यक्ष से मांगी है।  मेहसाणा के विधायकों की भी खिंचाई हुई है। गुजरात में भाजपा सूत्रों का कहना है कि 22 साल में पहली बार पटेल समुदाय का वोट बंट गया है। कुछ इलाकों में तो पटेल पूरी तरह भाजपा के खिलाफ हैं।

हार्दिक की सीडी से भाजपा को ही नुकसान
अगर सिर्फ इतना होता तो भाजपा के लिए चिंता  की बात होती लेकिन एक और बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पहली बार भाजपा के खिलाफ जातियों का गठजोड़ खड़ा हो रहा है। युवा भाजपा से नाराज हैं। हार्दिक पटेल की सी.डी. लीक करने से नुक्सान ज्यादा और फायदा कम हुआ है।

चुनाव जीतने के लिए जो फार्मूला मोदी ने उत्तर प्रदेश में अपनाया था ठीक वैसे ही फार्मले को राहुल गांधी ने गुजरात में पकड़ा है। दोनों राज्यों में कुछ समीकरण मिलते हैं। अपने गुजरात दौरे में राहुल गांधी हर उस तरीके को अपना चुके हैं जिसको अब तक भाजपा नेता अपनाया करते थे। सुबह-सुबह मंदिर जाना, रैलियों में दोपहर को भाषण देना और शाम में सड़क पर निकल जाना, कभी चाय की दुकान पर बैठकर चाय की चुस्की लेना तो भुजिया की दुकान पर भुजिया खाना। भाजपा चाय पर चर्चा कर रही है तो कांग्रेस के पास ‘काफी विद कांग्रेस’ कार्यक्रम है।

By Editor