गुजरात के ग्रामीण इलाके में पैठ बनाने में विफल क्यों रहे केजरीवाल

अब यह भी माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल अखबारों, टीवी, सोशल मीडिया में जितने छाए हैं, जमीन पर उस तरह नहीं हैं। गांवों में पैठ बनाने में विफल क्यों रहे।

गुजरात में विधानसभा चुनाव की तैयारी अब तेज हो गई है। Arvind Kejriwal के बारे में शुरू में जिस तरह के दावे किए जा रहे थे, अब उसके विरुद्ध सच्चाई सामने आने लगी है। यह साफ हो गया है कि अरविंद केजरीवाल गुजरात के गांवों में पैठ बनाने में विफल रहे। आखिर इसकी वजह क्या है?

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली-पंजाब मॉडल की कॉपी गुजरात में लागू करनी चाही। पंजाब में सब्सिडी वाली राजनीति चल गई थी। बिजली के बिल माफ करने तथा सबसे बढ़कर किसानों का कर्जा माफ करने का वादा भी चल गया था। दरअसल पंजाब के किसान दशकों से कर्जा माफी का आंदोलन चलाते रहे हैं। इसीलिए केजरीवाल का नारा किसानों की आकांक्षा से मेल खा गया और समर्थन भी मिला। लेकिन गुजरात पंजाब नहीं है। गुजरात के किसान और पंजाब के किसानों के सोचने में फर्क है।

गुजरात के किसान कभी कर्जा माफी आंदोलन के लिए नहीं जाने गए। वहां के किसान मार्केट में अपनी जगह चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बाजार से उन्हें जोड़ा जाए। अधिक मुनाफा मिले। पंजाब के किसान अधिक मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए आंदोलन करते रहे हैं। ये बुनियादी फर्क है पंजाब और गुजरात के किसानों में। केजरीवाल गुजरात के पाटीदार और पंजाब के जाट किसानों में फर्क नहीं समझ सके। इसी लिए उन्हें बाहरी पार्टी भी माना जाता है।

अब धीरे-धीरे यह भी माना जा रहा है कि केजरीवाल मीडिया में जितनी चर्चा में हैं, जमीन पर उनकी पकड़ वैसी नहीं है। गांवों में वे पकड़ बनाने में विफल रहे। वहीं कांग्रेस के लिए जिग्नेश मेवानी लगातार दलितों के मुद्दे उठा रहे हैं। कांग्रेस ने आदिवासियों के बीच भी पकड़ बनाए रखी है। अब देखना है, परिणाम क्या होता है।

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