आज बिहार में पांचवें चरण में पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव था। हम भी हाजीपुर और सारण लोकसभा के कुछ बूथों और गांवों में चक्कर मार आये। वोटर न वोट के पहले बोल रहा था, न वोट देने के बाद। पर नेता चुप नहीं थे। सुबह हम करीब पौने सात बजे हाजीपुर लोकसभा के हाजीपुर विधान सभा के बूथ नंबर 260 पर पहुंचे।

 वीरेंद्र यादव 

यह बूथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय के गांव कर्णपुरा में स्थित है। वे इसी बूथ के वोटर हैं। इवीएम सील करने में परेशानी के कारण करीब 15 मिनट विलंब से मतदान शुरू हुआ। सुबह सात बजे तक नित्यानंद राय बूथ पर पहुंच चुके थे। मतदान की प्रक्रिया शुरू होने के बाद उन्होंने वोट डाला और फिर चुनाव में एनडीए की जीत का दावा किया।
इसके बाद हम भी वहां से हाजीपुर स्टेशन के लिए प्रस्थान किये। रास्ते में कई बूथों पर गये। चौहट्टा के एक मतदान केंद्र में इवीएम की खराबी के कारण एक घंटे तक मतदान बाधित रहा। हाजीपुर स्टेशन पहुंचने के बाद हमने एक साथी सुनील यादव जी को फोन किया। उन्होंने बताया कि उनका घर कर्णपुरा के पास ही था, लेकिन हम वहां से काफी आगे बढ़ चुके थे। हाजीपुर से सारण लोकसभा के सोनपुर विधान सभा क्षेत्र की ओर प्रस्थान किये। हमारा मोटरसाइकिल का सारथी दीपक था। गंडक नदी के पार होने के बाद गांव की राह पकड़े। कई गांव और बूथ होते हुए सोनपुर स्टेशन पहुंचे। वहां से हरिहर क्षेत्र मेला की ओर बढ़े। कई बूथों पर गये। मतदान शांतिपूर्ण चल रहा था।

हम गंडक नदी के किनारे लगने वाले हरिहर क्षेत्र मेला में पहुंचे। चुनाव की रिपोर्टिंग उबाउ होने लगी थी। नदी किनारे सीढि़यां बनायी जा रही है और उनका सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। कुछ तस्वीर भी उतारा। वहीं एक गुमटी में दुकान थी। दुकानदार से बातचीत शुरू हुई। शुरुआत मेला क्षेत्र को लेकर हुई। मेला के इतिहास पर कम और बाजार पर ज्यादा चर्चा हुई। चर्चा में एक बात का दर्द उभर कर आया कि मेनका गांधी के कानून के कारण मेला की रौनक ढह रही है। इसका असर पशुओं की खरीद-बिक्री पर भी पड़ा है। पक्षियों की बिक्री पूरी तरह प्रतिबंधित हो गयी है। हाथियों की खरीद-बिक्री बंद है। घोड़ा और बैल की बिक्री ही प्रमुख बच गयी है। हमने पूछा- घोड़ा के खरीददार किस जाति के लोग ज्यादा होते हैं।

उन्होंने बताया कि यादव व राजपूत जाति के लोग घोड़ा की खरीद-बिक्री में रुचि लेते हैं। घोड़ा की कीमत लाख रुपये के आसपास पहुंच गयी है। फिर हमने पूछा- ट्रैक्टर के कारण खेती में बैलों की उपयोगिता समाप्त हो गयी है। अब बैल कौन खरीदता होगा। उन लोगों ने बताया कि अब लोग शौक के लिए बैल पाल रहे हैं। कुछ गरीब लोग भी बैल रखते हैं। हम हमारा सवाल- गरीब बैल खरीद सकता है क्या। बैल की कीमत कितनी होगी। उस भीड़ में एक व्यक्ति से रहा नहीं गया। उन्होंने पूछ लिया- चुनाव के दिन आप बैल की कीमत पर चर्चा लेकर बैठ गये हैं। फिर हमने कहा कि चुनाव में कुछ रखा ही नहीं है तो बैल की ही चर्चा कर लेते हैं। बात आगे बढ़ी। बातचीत में जब राजपूत की चर्चा हो रही थी तो वे थोड़ा उत्साहित दिख रहे थे। हमने पूछा- आप बाबू साहेब हैं क्या। उन्होंने हामी भरी। फिर उन्होंने समझाया। बच्चा बाबू सोनपुर के ही रहने वाले थे। उनका जहाज भी चलता था। सोनपुर में जातीयों की बसावट की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि किस इलाके में किस जाति के लोग बसते हैं और उस क्षेत्र विशेष का वोट किधर जा रहा है।

पशु मेले पर विमर्श के बाद हम सबलपुर दियारा के लिए प्रस्थान किये। पूछते-पूछते रास्ता भी भटक गये। दीपक को अपना कार्यालय जाना था। इसलिए यात्रा समेटने में जुट गये। हम सबलपुर पहुंच गये, लेकिन वहां से दीघा पुल पहुंचने की राह नहीं थी। वहां से वापस लौटे और हरिहरनाथ मंदिर के बगल से जाने वाली सड़क से हम सोनपुर-दीघा रोड के लिए चल पड़े। दिन चढ़ने के साथ धूप तेज होती जा रही थी। हवा के साथ धूल भी कभी-कभार परेशान कर रह थी। हम अनिसाबाद होते हुए गांधी सेतु से हाजीपुर गये थे और गंडक नदी पर बने पुल पार कर सोपनुर पहुंचे और फिर जेपी सेतु पार कर वापस पटना लौटे। करीब छह घंटे की यात्रा में चुनाव पीछे छूटता गया और ‘चुनाव पर्यटन’ ज्यादा हावी होता गया।

By Editor