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Haque Ki Baat:पंचायत चुनाव पर औकात में आया आयोग

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Irshadul Haque

Haque Ki Baat में Irshadul Haque बता रहे हैं कि पंचायत चुनाव पर अदालती लड़ाई में समय व संसाधन बर्बाद करने वाला बिहार का राज्य चुनाव आयोग अपनी औकात में आ गया है.

EVM की रट लगा कर महीनों बर्बाद करने के बाद अब राज्य चुनाव आयोग बैलेट पेपर पर पंचायत कराने को मजबूर है. चार महीने पहले जब बिहार में पंचायत चुनाव की बात हो रही थी तो आयोग ईवीएम से चुनाव कराने पर अडिग था.

बिहार के राज्य चुनाव आयोग EVM के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग से महीनों कानूनी लड़ाई लड़ता रहा. इस लड़ाई के कारण पंचायत चुनाव टालना पड़ा. इस लड़ाई में राज्य चुनाव आयोग ने सरकारी संसाधन व समय बर्बाद किया. लेकिन इस लड़ाई का नतीजा ढाक के तीन पात की तरह सामने आया.

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अब नतीजा यह है कि पंचायत चुनाव में मुखिया सहित अन्य पदों का चुनाव तो EVM से होगा पर सरपंच व पंचों का चुनाव बैलेट पेपर पर कराया जायेगा.

गौरतलब है कि बिहार में पंचायत चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग ने केंद्रीय चुनाव आयोग से एनओसी मांगी थी ताकि वह विशेष तकनीक वाली M3 Generation की EVM खरीद सके. लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग ने एनओसी नहीं दी थी.

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इसके बाद राज्य चुनाव आयोग को अपने अहंकार पर चोट महसूस हुई और उसने केंद्रीय चुनाव आयोग को हाईकोर्ट में घसीट दिया था. करीब दो महीने तक अदालती लड़ाई के कारण पंचायत चुनाव टालना पड़ा. बाद में अदालत ने व्यवस्था दी थी कि दोनों आयोग इस पर खुद मिल बैठ कर फैसला करें. इस बीच कोराना की विकराल स्थिति उत्तपन्न हो गयी. जिससे पंचायत चुनाव स्थगित करना पड़ा. अगर मामला अदालत में नहीं जाता तो संभव था कि चुनाव समय पर हो जाते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

अब जब नये सिरे से चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं तो राज्य चुनाव आयोग को EVM की भारी कमी महसूस हो रही है. दूसरे राज्य उतनी मशीनें नहीं दे रहे हैं जितनी इसे जरूरत है. उधर चुनाव को अब टालना संभव नहीं है. क्योंकि पहले ही कोरोना के कारण चुनाव टालने के लिए चुनाव नियमावली में संशोधन करने के लिए राज्य सरकार को भारी मशक्कत करनी पड़ी है. दूसरी तरफ नयी मशीनों की व्यवस्था कर पाना संभव नहीं है.

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ऐसे में राज्य निर्वाचन आयोग बेबस है. और इसी बेबसी का नतीजा है कि उसे तय करना पड़ा है कि पंचायतों के कुछ पदोंं पर तो EVM से चुनाव होंगे. पर कुछ पदों ( सरपंच, पंच आदि) पर बैलेट पेपर से चुना होंगे.

अगर जनवरी-फरवरी में ही राज्य चुनाव आयोग कानूनी लड़ाई में कीमती समय और संसाधन जाया नहीं करता तो यह दिन उसे नहीं देखना पड़ता.

By Editor