हिंदी साहित्य सम्मेलन में भारतेंदु हरिश्चन्द्र और राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह को दी गई पुष्पांजलि

बिहार की राजधानी पटना में आज हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित हिंदी के महान कवियों भारतेन्दु हरिश्चंद्र एवं राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का संयुक्त जयंती-समारोह मनाया गया.

आधुनिक हिन्दी, जिसे आरंभ में खड़ी बोली भी कहा गया, अपने समय के महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चन्द्र की अंगुली पकड़ कर जवान हुई। किंतु हिन्दी के जिन कवियों और कथाकारों ने उसके बालों में कंघी की, शब्द-पुष्पों और भावों से उसका ऋंगार किया,उनमें महान कथा-शिल्पी राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का नाम अग्र-पांक्तेय है। राजाजी, कथा-लेखन में अपनी अत्यंत लुभावनी शैली के कारण, हिंदी कथा साहित्य में ‘शैली-सम्राट’ के रूप में स्मरण किए जाते हैं। उनकी कहानियाँ अपनी नज़ाकत भरी भाषा और रोचक चित्रण के कारण, पाठकों को मोहित करती हैं।

यह बातें बुधवार को, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में भारतेंदु और राजाजी के संयुक्त जयंती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, कहानी किस प्रकार पाठकों को आरंभ से अंत तक पढ़ने के लिए विवश कर सकती है, यह राजाजी की कहानियों से समझा जा सकता है। इसीलिए वे अपने समय के सबसे लोकप्रिय कहानीकार सिद्ध हुए।

आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, भारतेंदु और राजा जी, दोनों हीं संपन्न परिवार से आते थे। आर्थिक-संपन्नता के साथ वे साहित्यिक और बौद्धिक संपन्नता से भी युक्त थे। दोनों हीं, साहित्य और ज्ञान को ‘अर्थ’ से ऊपर रखते थे। भारतेंदु जी ने तो धन से एक प्रकार का बैर रख लिया था। वो कहा करते थे- “ ‘धन’ ने मेरे पुरखों को खा लिया, अब मैं इसे खा जाऊँगा”। उन्होंने सच में पुरखों का अपना सारा धन, साहित्य के लिए लुटा दिया।

वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डा ध्रुब कुमार, कुमार अनुपम, कृष्ण रंजन सिंह, वरिष्ठ कवि जय प्रकाश पुजारी, डा एच के सिंह, अर्जुन प्रसाद सिंह, प्रणब समाजदार, अमित कुमार सिंह, शत्रुघ्न कुमार आदि ने भी दोनों मनीषी हिन्दी-सेवियों के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।

By Editor