आईपीएस अफसर मंसूर अहमद के निलंबन पर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) ने कड़ा रुख अपनाते हुए  बिहार के मुख्य सचिव और गृहसचिव  के खिलाफ सरकार को जांच का निर्देश दिया है. कैट के आदेश की एक प्रति नौकरशाही डॉट कॉम के पास है.mansoor.ahmad

CAT के इस फैसले के बाद मंसूर अहमद के निलंबन की तार्किकता पर गंभीर सवाल खड़ा हो गया है.

गौरतलब है कि आईपीएस अफसर मंसूर अहमद को पिछले महीने 21 तारीख को निलंबित कर दिया गया था. उन पर मनमानी करने और अनुशासनहीनता के आरोप लगाये गये थे.

ध्यान रहे कि आईपीएस अफसर मंसूर अहमद ने बिहार के मुख्यसचिव अंजनी कुमार सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि उन्होंने उनके प्रोमोशन के एवज रिश्वत की मांग की थी. कैट ने इन आरोपों को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि राज्य सरकार को इन आरोपों की जांच करनी चाहिए.

कैट के इस आदेश के बाद एक वरिष्ठ  आईपीएस अफसर ने गोपनीयता की शर्त पर कहा कि सरकार को चाहिए कि मुख्यसचिव और गृहसचिव को छुट्टी पर भेज दे  और तब इस मामले की जांच हाईकोर्ट के किसी रिटायर जज से करायी जानी चाहिए. तभी इस मामले में सही जांच संभव है क्योंकि शासन में मौजूद किसी वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ जांच बाधित हो सकती है.
ट्रिब्युनल ने केस नम्बर 321य 2016 में दिये अपने फैसले में कहा है कि आईपीएस अफसर मंसूर अहमद के खिलाफ निलंबन के जो आधार बनाये गये हैं वह बहुत तर्कपूर्ण नहीं हैं. ध्यान रहे कि सेंट्रल एडमिंस्ट्रेटिव ट्रिब्युनल केंद्रीय सेवाओं से जुड़े विवादों से के निपटारे की एक अदालत है. इस ट्रिब्युनल के उरिता दत्ता सेन और एके उपाध्याय की दो सदस्यीय बेंच ने मंसूर अहमद के निलंबन के साथ साथ उनके निलंबन की अवधि में सहरसा ट्रांस्फर किये जाने और उनसे जूनियर अफसर के अधीन काम करने के बिहार सरकार के आदेश पर भी तीख प्रहार करते हुए उसे गलत करार दिया है और उन्हें पटना वापस बुलाने का निर्देश दिया है.

क्या था विवाद
पाठकों को याद होगा कि आईपीएस अफसर मंसूर अहमद ने कुछ महीने पहले अपने प्रोमोशन के सिलसिले में अपनी शिकायत मुख्यसचिव के पास ले कर गये थे. तब मंसूर ने मुख्यसचिव अंजनी कुमार सिंह पर सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा था कि अंजनी कुमार ने उनसे प्रोमोशन के एवज रिश्वत की मांग की थी. मंसूर द्वार इस सनसनीखेज आरोप के बाद प्रशासनिक हलके में ह हड़कम्म मच गया था.

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