खाकी वर्दी में देश सेवा करने वाले पुलिस अधिकारी इस बार के लोकसभा चुनाव में भी खादी का रौब पाने के लिये बेताब नजर आ रहे हैं। बिहार में पुलिस अधिकारियों के राजनेता बनने का सिलसिला काफी पुराना है। खाकी के प्रति आम लोगों में खासा आकर्षण देखा गया है।

यही वजह है कि कई खाकीधारी अपनी बेहतर छवि का फायदा उठाकर जनप्रतनिधि बनने में कामयाब भी रहे हैं।पुलिस सेवा से अवकाश प्राप्त कई अधिकारी देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद की शोभा बढ़ा चुके हैं और कई इस बार के चुनावी रण में उतर पड़े हैं। बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक पद से सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार गुप्ता भी कई महीनों से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वह पटना साहिब संसदीय सीट से बतौर निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं। पूर्व पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) सुधीर कुमार ने पूर्व बाहुबली सासंद मोहम्मद शहाबुद्दीन के गढ़ सीवान सीट से ताल ठोंकी है। वह शिवसेना के टिकट पर सत्ता के महासंग्राम में जोर आजमा रहे हैं। वह लंबे अरसे तक सीवान के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) रहे थे। डीआईजी के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वह सीवान में सक्रिय हैं।

केवल भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ही नहीं, जूनियर अफसरों ने भी राजनीति के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी है। सोम प्रकाश ने दारोगा की नौकरी छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने का निश्चय किया। वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में सोमप्रकाश ने औरंगाबाद के ओबरा से निर्दलीय चुनाव लड़ा और विधायक चुने गए। हालांकि, 2015 विधानसभा चुनाव में उन्हें शिकस्त मिली थी। स्वराज पार्टी लोकतांत्रिक के अध्यक्ष सोम प्रकाश इस बार औरंगाबाद संसदीय सीट से लोकसभा के चुनावी रण में उतरे हैं।

पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं ऑल इंडिया पुलिस गैलेंट्री मेडल प्राप्त वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव और पटना के पुलिस अधीक्षक (यातायात) के पद पर काम कर चुके श्रीधर मंडल करीब एक दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। अपराध अनुसंधान विभाग (सीआईडी) में पुलिस अधीक्षक रहे राम निरंजन राय पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद राजनीति की डगर पर चल पड़े। उन्होंने ‘राष्ट्रवादी चेतना पार्टी’ का गठन किया है।

बदले दौर की राजनीति में एक नया ट्रेंड भी देखने को मिल रहा है। सत्ता की ओर बढ़ते आकर्षण के साथ किसी ने वर्तमान व्यवस्था के साथ नाराजगी जताई तो किसी ने अवकाश ग्रहण के बाद राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा। वैसे नौकरशाह या पुलिस अधिकारी जिनमें कुछ अलग करने की चाहत होती है, वे राजनीति का रुख कर रहे हैं। बिहार में पूर्व आइपीएस अधिकारियों की एक लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने समाज से सीधे जुड़ने के लिए राजनीति में कदम रखा और खाकी से खादी के सफर पर चल पड़े। इनमें कई ऐसे पुलिस अधिकारी शामिल हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र में सफलता भी पाई।

इनमें सबसे पहला नाम दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर और पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह के पुत्र निखिल कुमार का है, जिन्होंने राजनीति के मैदान में भी सफलता की नई इबारत लिखी है। सेवानिवृत्ति के बाद परिवार की राजनीतिक विरासत को संभालते हुए वह 2004 में कांग्रेस के टिकट पर औरंगाबाद के सांसद बने। बाद में वह केरल एवं नगालैंड के राज्यपाल भी बने।

पुलिस पदाधिकारी के रूप में लोकसभा के चुनावी जंग को जीत कर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह बनाने वालों में पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) ललित विजय सिंह का नाम भी शामिल है। वर्ष 1989 के आमचुनाव में श्री सिंह ने जनता दल के टिकट पर बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और कांग्रेस की दिग्गज कृष्णा सिंह को पराजित कर जीत हासिल की। पूर्व आईजी सैयद फजल अहमद 1984 में मुंगेर संसदीय सीट से लोकसभा के चुनावी जंग में उतरे। उन्होंने जनता पार्टी (जेएनपी) के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पूर्व डीआईजी राजेन्द्र शर्मा ने 1991 के लोकसभा चुनव में जहानाबाद संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर किस्मत आजमायी लेकिन उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उम्मीदवार रामाश्रय प्रसाद सिंह से हार का सामना करना पड़ा। उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा।

पूर्व आईजी बलवीर चांद ने भी 2004 के लोकसभा चुनाव में गया (सुरक्षित) संसदीय सीट से अपनी किस्मत आजमाई। वह भाजपा के टिकट पर चुनावी रणभूमि में उतरे लेकिन उन्हें राष्ट्रीय जनता दल उम्मीदवार राजेश कुमार मांझी से हार का सामना करना पड़ा। पूर्व डीजीपी ध्रुव प्रसाद ओझा (डीपी ओझा ) 2004 में बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी बने लेकिन जनता ने उन्हें नकार दिया। पूर्व डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा ने 2014 में नालंदा लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनावी रणभूमि में ताल ठोकी लेकिन उन्हें भी पराजय का सामना करना पड़ा। वह तीसरे नंबर पर रहे। दारोगा की नौकरी से वीआरएस लेने वाले रवि ज्योति राजगीर से जनता दल यूनाईटेड के विधायक हैं। रवि ज्योति ने 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता सत्यदेव नारायण आर्य (अभी हरियाणा के राज्यपाल) को हराकर सबको चौंका दिया था।

पूर्व आईजी मनोहर प्रसाद सिंह ने 2010 में जदयू के टिकट पर कटिहार के मनिहारी विधानसभा क्षेत्र से किस्मत आजमायी और विधायक बने। उन्होंने 2015 में कांग्रेस के टिकट पर मनिहारी से चुनाव लड़ा और वह फिर विधायक बनने में सफल रहे। पूर्व आईपीएस अधिकारी मैकू राम मोहनिया विधानसभा क्षेत्र से 1995 में चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पूर्व डीजीपी आर. आर. प्रसाद ने विधान परिषद् के लिए चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें भी असफलता हाथ लगी।

बिहार कैडर के 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडे ने 2009 में भाजपा के टिकट पर बक्सर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए समय से पहले वीआरएस ले लिया था। भाजपा के तत्कालीन सांसद लालमुनि चौबे ने बगावत की धमकी देकर दोबारा टिकट लिया और श्री पांडे चुनाव लड़ने से वंचित रह गये। राजनीति में फेल होने के बाद गुप्तेश्वर पांडेय ने वीआरएस रद्द करने की अर्जी दी, जिसे नीतीश सरकार ने मंजूर करके उन्हें दोबारा सर्विस में रख लिया। श्री पांडे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के डीजीपी बना दिए गए हैं।

झारखंड के पूर्व डीजीपी विष्णु दयाल राम (वी. डी. राम) ने 2014 में भाजपा के टिकट पर पलामू संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वह पटना के वरीय पुलिस अधीक्षक और भागलपुर के पुलिस अधीक्षक भी रहे हैं। इस बार भी वह भाजपा के टिकट पर पलामू संसदीय सीट से उम्मीदवार है। इस सीट पर चौथे चरण में 29 अप्रैल को मतदान हो चुका है।

पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉ. अजय कुमार ने जमशेदपुर सीट पर 2011 के उपचुनाव में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के टिकट पर चुनाव लड़ा और विजयी बने। वर्ष 2014 के आम चुनाव में उन्होंने एक बार फिर झाविमो के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन इस बार कामयाब नहीं हो पाये। वह वर्तमान में झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष हैं और इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वह पटना के पुलिस अधीक्षक (नगर) और जमशेदुपर के पुलिस अघीक्षक भी रहे चुके हैं।

पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉ. रामेश्वर उरांव 2004 में झारखंड के लोहरदगा संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर रणभूमि में उतरे और विजयी रहे। वर्ष 2009 और 2014 में उन्होंने लोहरदगा लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर ताल ठोंकी लेकिन उन्हें नाकामी हाथ लगी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हे टिकट नहीं दिया। इस बार के चौथे चरण के मतदान में लोहरदगा सीट से कांग्रेस के टिकट पर सुखदेव भगत किस्मत आजमा चुके हैं।

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