जानिए अफो या माफ कर देने का इस्लामी सिद्धांत क्या है

अफो अरबी भाषा एक शब्द है जिसका अर्थ है क्षमा करना बक्श देना दर गुजर कर ना बदला ना लेना और गुनाह पर पर्दा डालना.

 
 

शरीयत के इस्तेमाल में अफो से मुराद किसी की निजी बुराई पर बदला लेने की ताकत के बावजूद बदला ना लेना और माफ कर देना है.

ताकत नहीं होने की वजह से अगर इंसान बदला ना ले सकता हो तो यह क्षमा करना नहीं होगा बल्कि इसे असमर्थता का नाम दिया जाएगा. वह तो तब होगा जब कोई व्यक्ति समर्थ था वह शक्ति रखने के बावजूद किसी को माफ कर दे. गुस्से पर काबू पाने की वास्तविकता यह है कि किसी गुस्सा दिलाने वाली बात पर खामोश हो जाए और गुस्सा के इजहार और सजा देने और बदला लेने की क्षमता के बावजूद सब्र व सुकून के साथ रहे.

इस्लामी हिदायत

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गुस्सा खत्म करने के तरीके की हिदायत दी है. अफो के दो स्तर हैं. पहला यह कि आदमी अपने दुश्मन या दोषी को माफ कर दे.चाहे उसकी तबीयत इस पर आमादा ना हो तो भी.  दूसरा स्तर यह है कि दिल की रजा व खुशी के साथ माफ करें और अगर संभव हो तो उसके साथ कुछ भलाई का एहसास भी करें. मनुष्य का अपने शत्रु से बदला लेना या गुस्से को पी जाना वास्तव में बड़े हिम्मत का काम है
 
 इससे अधिक कमाल दर्जे की बात तो यह है कि उसे दिल में साफ भी कर दे. अफो या दर गुजर  करना अल्लाह का पसंदीदा कार्य है. इस अमल को अपनाने वाले को अल्लाह पाक दुनिया व आखिरत में बहुत सारे इनामों से नवाजता है.

कुरान का फरमान

हजरत इमाम हुसैन रज़ी अल्लाह हू अन्हो का वाक्य है कि आपके खादिम के हाथों से आपके सर पर शोरबा गिर गया. यह आप को नागवार गुजरा. इसके बाद खादिम ने यह आयत पढ़ी
                   “वह लोग जो तंगी में और फराखी  दोनों में अल्लाह की राह में खर्च करते हैं और गुस्से को पीने वाले और लोगों को माफ करने वाले हैं और अल्लाह ऐसे लोगों को महबूब रखता है. बुराई से बचो. भलाई और एहसान के साथ करो. तुम्हारा दुश्मन है वह तुम्हारा गहरा दोस्त बन जाएगा.” ( आल ए इमरान 133)
इस आयत मुबारक में यह शिक्षा दी गई है कि मोमिन का तरीका यह होना चाहिए कि बुराई का उत्तर बुराई से ना दे बल्कि जहां तक हो सके बुराई के मुकाबले भलाई से पेश आएं.
 
 
अगर उसे सख्त बात कहे या बुरा मामला कहे तो उसके मुकाबले वह शैली अपनाना चाहिए जो उस से बेहतर हो. जैसे गुस्से के जवाब में स्नेह, गाली के जवाब में सभ्यता, सख्ती के जवाब में नरमी व मेहरबानी से पेश आएं. इस से दुश्मन ढील पड़ जाएगा और एक समय ऐसा आएगा वह दोस्त की तरह बर्ताव करने लगेगा.
करीब है कि अल्लाह तुम्हें और उनमें से जो तुम्हारे दुश्मन हैं, दोस्ती कर दे और अल्लाह का दीन है और  बख्शने वाला मेहरबान है.
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अल्लाह पाक  फरमाता है और जब वह गजनाक बना हो तो माफ कर देता है और बुराई का बदला उसकी तरह बुराई है फिर जिसने माफ कर दिया और इस्लाह कर ली तो इसका असर अल्लाह पर है और जिसमें  माफ कर दिया तो अवश्य ही यह हिम्मत के कामों में से है.

एक रिवायत

एक सहाबी मामून रिवायत करते हैं कि एक दिन उनकी बांदी एक पायला लेकर आई जिसमें गरम-गरम सालन था उनके पास उस समय अतिथि बैठे थे वह बांदी लड़खड़ाई  उन पर वह शेरबा  गिर गया सहाबी ने  बांदी को मारने का इरादा किया तो बांदी ने कहा है मेरे आका, अल्लाह पाक के इस कॉल पर अमल कीजिए तब सहाबी ने कहा मैं तुम्हारे साथ में सुलह करता हूं और तुम को आजाद कर देता हूं.
नबी ने फरमाया कि जब कयामत का दिन होगा तो अल्लाह पाक के सामने एक मुनादी आवाज लगाएगा जिसने अल्लाह के पास कोई भी नेकी  भेजी वह आगे बढ़े तो केवल वह व्यक्ति आगे बढ़ेगा जिसमें किसी की खता माफ की होगी.

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