झूठ का मुंह काला…! झूठ से लड़ने के कारण नोबेल की रेस में जुबैर

झूठ उड़ तो सकता है, पर उसके पांव नहीं होते। वह टिक नहीं सकता। भ्रम से निकलिए, झूठ की कहीं पूजा नहीं होती। झूठ से लड़ने के कारण ही नोबेल की रेस में जुबैर।

आल्ट न्यूज के फैक्ट चेकर मो. जुबैर और प्रतीक सिन्हा नोबेल पुरस्कार की रेस में है। उन्हें नोबेल मिल भी सकता है, नहीं भी मिल सकता है। लेकिन एक बात तो तय हो गई कि झूठ की जय-जय करने वाले भले ही ज्यादा शोर करते हैं, वे आस्थावान लोगों को थोड़े देर के लिए प्रभावित भी कर लेते हैं, कुछ समय के लिए लोग झूठ को पूजने भी लगते हैं, लेकिन यह ज्यादा दिन टिकता नहीं। भारत सहित दुनिया भर में झूठ की नहीं, सत्य की ही पूजा होती है। जुबैर झूठ के खिलाफ संघर्ष के प्रमुख लोगों में एक हैं। इसीलिए उनका नाम नोबेल पुरस्कार की रेस में है। उन्हें नोबेल नहीं भी मिले, तो भी रेस में नाम आना क्या कम है?

भारत सहित दुनियाभर में नफरत फैलाने में कई लोगों को महारत हासिल है। नफरत की आंधी में थोड़े देर के लिए लोग बहने भी लगते हैं, झगड़े-फसाद करके अपना और अपने देश का नुकसान भी करते हैं, लेकिन अंततः नफरत नहीं, प्रेम ही आदमी का स्वभाव है।

ये वही जुबैर हैं, जिन्होंने चार साल पहले एक ट्वीट किया था, जिसमें 40 साल पुरानी फिल्म का स्क्रीन शॉट दिया था। उनके चार साल पुराने ट्वीट पर किसी ने एक ट्वीट किया कि उसकी भावना आहत हुई है। बस इसी बात पर जुबैर को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद तो उन पर रोज नए मुकदमे होने लगे। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और 24 दिन अनेक जेलों में रहने के बाद उन्हें किसी तरह जमानत मिली।

ये वही जुबैर हैं, जिन्होंने भाजपा प्रवक्ता के नफरत भरे वक्तव्य को दुनिया के सामने लाया। बाद में भाजपा ने उस प्रवक्ता को पार्टी से निकाल दिया, लेकिन सोशल मीडिया पर आज भी उस नफरत के समर्थक दिखते हैं। जुबैर का काम ही है झूठ को बेनकाब करना। जिस भारत में सत्य की पूजा होती है, आजकल वहीं झूठ फैलानेवालों का शोर है। जुबैर इसी झूठ से लड़ रहे हैं।

जहां लालची रहते हैं, वहां ठग भूखे नहीं मरते और जहां अंधभक्त रहते हैं, वहां झूठ के कारोबारी सिंहासन पर कब्जा कर लेते हैं। राहुल गांधी के वीडियो को तोड़-मरोड़कर प्रचार किया गया कि राहुल ने कहा कि ऐसी मशीन लाऊंगा, जिसमें एक तरफ से आलू डालो, तो दूसरी तरफ सोना निकलेगा। और मजेदार बात है कि ऐसे लोग आज भी मिल जाएंगे, जो मानते हैं कि राहुल ने ऐसा कहा था।

पहले भी सत्य के लिए लड़ना पड़ता था। आज भी लड़ना पड़ता है। पहले भी सत्य के कारण कई लोगों को जान गंवानी पड़ी और आज भी कई लोगों को जेल जाना पड़ता है। जुबैर को नोबेल मिले या न मिले, हमारे लिए तो सीख है कि जिस तरह धन नहीं, ज्ञान की सर्वत्र पूजा होती है, उसी तरह झूठ की नहीं, हर जगह सत्य का ही सम्मान किया जाता है।

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