लोकतान्त्रिक जन पहल, बिहार द्वारा प्रशांत भूषण के सुप्रीम कोर्ट अवमानना मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद इसे लोगो के संवैधानिक अधिकारों का हनन बताया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट अवमानना मामले में माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया था . उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना (Contempt of court ) का दोषी करार दिया था। इसके बाद पटना में भी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशांत भूषण के बचाव में प्रदर्शन किया था।

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लोकतान्त्रिक जान पहल के संयोजक सत्य नारायण मदन ने कहा की हमारा मानना है कि जबसे मोदी सरकार आयी है लोकतान्त्रिक संस्थाओं को अंदर-बाहर से कमजोर करने और उसे सत्ता के हथियार के रुप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उसकी स्वायतता खत्म की जा रही है। प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट अवमानना मामले में दोषी करार दिए जाने से ऐसा प्रतीत होता है की लोगो के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है।

उन्होंने आगे कहा की गैर भाजपा सरकारों में भी सांठगांठ की घटनाएं होती थीं लेकिन उसका स्वरुप निजी संबंधों पर आधारित था। नरेन्द्र मोदी सरकार में व्यवस्थित हमला लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर जारी है। वरना यह कैसे संभव हुआ की मोदीराज में एटॉर्नी जनरल की असंवैधानिक तरीके से उपेक्षा की गयी। मेरी राय में बिना शीर्ष के इशारे के यह संभव नहीं है।

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ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता एवं पूर्व एटॉर्नी जेनरल सोली सोराबजी ने भी कहा था कि प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में प्रदत्त धारा 129 के तहत दी गई अंतर्निहित अधिकार का दुरुपयोग किया है।

पूर्व अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अवमानना के मामले को शुरू करने से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के अंतर्निहित अधिकार की निश्चित सीमाएं हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की यह राय कि अवमानना के स्वत: संज्ञान को शुरू करने के पहले एटर्नी जेनरल की सहमति लेना अनिवार्य नहीं है।

सोराबजी ने कहा था कि अवमानना के मामले में भी अभियुक्त अगर अपनी बात को प्रमाणित करने का अवसर चाहता है, तो उसे दिया जाना चाहिए।

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