महंगाई से कराहते लोग गुस्सा नहीं होते, ये है खास वजह

पहले प्लेटफॉर्म टिकट का दाम एक रुपया बढ़ता था, तो आंदोलन हो जाता था, अब रसोई गैस के सिलिंडर पर 50 रुपए बढ़ता है, फिर भी लोग सह लेते हैं, क्यों?

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कुमार अनिल

फरवरी महीने में दो बार रसोई गैस की कीमत बढ़ी। रविवार से 50 रुपए कीमत बढ़ गई। इससे पहले इसी महीने 25 रुपए कीमत बढ़ाई गई थी। पेट्रोल की कीमत सौ के करीब है। लोग कराह रहे हैं, पर आंदोलित नहीं हैं। सत्ता से सवाल भी नहीं करते। पिछले 70 वर्षों में लोग इतने सहनशील कभी न थे। इसकी कुछ वजहें हैं।

हमारे समाज की एक खास मनोवृत्ति है। दूसरों का दुख देखकर हम सुख महसूस करते हैं। अपना दुख भूल जाते हैं। राज्य के नियंता इसे बखूबी जानते हैं। महंगाई हर साल बढ़ती है और हर साल की दस बड़ी घटनाओं को गूगल करें, तो बात आसानी से समझ में आ जाएगी।

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टीवी एंकर घंटों बताता है कि पाकिस्तान में कितनी महंगाई है और हम अपनी महंगाई भूल जाते हैं। ये एंकर विषय बदलते रहते हैं। कभी तीन तलाक, कभी जेएनयू में देशविरोधी नारे, कभी सीएए विरोधी आंदोलन सड़क पर क्यों का सवाल उठाते हैं।

यह खुद पर हंसने का भी अवसर है। जब जेएनयू के छात्र फीस बढ़ाने का विरोध कर रहे थे, तब हमारे समाज का एक हिस्सा उन्हीं एंकरों की भाषा बोलने लगा था। आस-पास ऐसे अनेक लोग थे, जो इस बात से नाराज थे कि जेएनयू में कम फीस क्यों रहे। वहां छात्र पढ़ते नहीं, देश का पैसा बर्बाद करते हैं। बाद में हमारे समाज ने मेडिकल कालेजों में बेतहाशा फीस वृद्धि को चुपचाप स्वीकार कर लिया।

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देश ने नोटबंदी में बहुत कुछ सीखा। सबसे बड़ी सीख यह थी कि अपना कष्ट भूल जाओ। सोचो कि तुम घंटों लाइन में खड़े हो, पर हमारे सैनिक तो सीमा पर दिन-रात खड़े हैं। यह सीख इतनी बड़ी थी कि हमने 50 दिन बाद भी किसी से कोई सवाल नहीं पूछा। सवाल से देश कमजोर होता है और स्वीकार से मजबूत।

अब हमें हर दुख स्वीकार है। इसलिए जो लोग सौ रुपए लीटर पट्रोल को लेकर भी सवाल नहीं पूछते, वे सवा सौ रुपए लीटर भी खरीदकर सवाल नहीं पूछेंगे। सवाल तो ‘पप्पू’ पूछते हैं।

खबरें छप रही हैं कि रसोई गैस पर मिलनेवाली सब्सिडी सरकार खत्म करनेवाली है। विश्वास न हो, तो किसी एजेंसीवाले से पूछ लीजिए। देश इसके लिए पूरी तरह तैयार है। देश का एक हिस्सा तो खुश भी होगा।

किसान आंदोलनकारी कह रहे हैं कि उनका आंदोलन एमएसपी के लिए ही नहीं है, बल्कि गरीबों को सस्ता अनाज मिलता रहे, इसके लिए भी है। अब उन किसान नेताओं को कौन समझाए कि हमारे समाज का एक अच्छा वर्ग गरीबों को सस्ता अनाज देने से परेशान है। वह वर्ग कहता है इससे गरीब खेत में काम करना नहीं चाहता। वह निठल्ला हो गया है। इसलिए जिस दिन पीडीएस खत्म होगा, उस दिन उसे भी लोग स्वीकार कर लेंगे।

देश बदल रहा है। यह नया हिंदुस्तान है।

By Editor