महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम में खंडित जनादेश सामने आने के 19 दिनों के बाद राज्य में मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर महाराष्ट्र में छह माह के लिए राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दी है। इस दौरान विधानसभा निलंबित रहेगी।

इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की गई थी। महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर जारी अनिश्चितता के बीच राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मंगलवार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश संबंधी एक रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेजी।

राज्यपाल सचिवालय की ओर से टि्वटर पर जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार श्री कोश्यारी का मानना है कि राज्य में संविधान के अनुरूप सरकार का गठन नहीं हो सकता। उन्होंने मंगलवार को संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों के तहत केन्द्र को इस संबंध में एक रिपोर्ट सौंपी।

आरोप-प्रत्यारोपों के दौर के बीच विपक्ष ने जोर देकर कहा कि श्री मोदी के विदेश जाने से ठीक पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राज्यपाल की सिफारिश का समर्थन किया गया और इसे राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया।

इस मसले पर राज्यपाल की इसलिए भी आलोचना की जा रही है क्योंकि उन्होंने राकांपा को सरकार बनाने के लिए दावा पेश करने के लिए पहले मंगलवार रात साढ़े आठ बजे तक का समय दिया था। आज सुबह राकांपा ने राज्यपाल से सरकार बनाने के लिए और समय देने का अनुरोध किया। इसके बाद राज्यपाल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर दी।
इससे पहले श्री कोश्यारी ने सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता दिया था। लेकिन चुनावी गठबंधन की सहयोगी शिव सेना की ओर से सरकार में बराबर की भागीदारी मांगे जाने के बाद भाजपा ने सरकार बनाने में अपनी अक्षमता का इजहार कर दिया।
इस बीच कांग्रेस ने कहा है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाना न केवल प्रजातंत्र से क्रूर मज़ाक़ है बल्कि सविंधान की परिपाटी को रौंदने वाला कुकृत्य है। पार्टी के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि राज्यपाल एवं दिल्ली के हुक्मरानों ने महाराष्ट्र के पीड़ित किसान और आम व्यक्ति से घोर अन्याय किया है।
राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही वर्ष 1960 में गठित महाराष्ट्र में मंगलवार को तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के 19 दिनों के बाद राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 105 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी जबकि शिव सेना को 56, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली हैं।
भाजपा के सरकार गठन से पीछे हटने के बाद राज्यपाल ने विधायकों की संख्या के हिसाब से दूसरी सबसे पार्टी शिवसेना को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। श्री कोश्यारी ने शिवसेना को सरकार बनाने के लिए अपना दावा पेश करने के वास्ते 24 घंटे की मोहलत दी थी।
शिवसेना नेताओं ने सोमवार को राज्यपाल से मुलाकात करके राकांपा और कांग्रेस का समर्थन हासिल करने के लिए उनसे कम से कम 48 घंटे की और मोहलत मांगी थी, लेकिन इससे श्री कोश्यारी ने इन्कार कर दिया था। बाद में राज्यपाल ने राकांपा को भी सरकार बनाने का न्योता दिया, लेकिन कोई समाधान नजर आता न देख उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की सिफारिश केंद्र सरकार से कर दी।
इस बीच शिवसेना ने सरकार गठन की कवायद के लिए उसे और अधिक मोहलत न दिये जाने के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
दो सौ अट्ठासी सदस्यीय विधानसभा में कोई भी पार्टी बहुमत के आंकड़े 145 को छू नहीं पायी। जिसके कारण राज्यपाल को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करनी पड़ी।
महाराष्ट्र में पहली बार राष्ट्रपति शासन 17 फरवरी 1980 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ था। उस समय केंद्र में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार सत्ता में थी। राष्ट्रपति शासन नौ जून 1980 तक रहा था।
दरअसल श्रीमती गांधी ने 1980 में सत्ता में लौटने के बाद विपक्षी पार्टियों के शासनवाली नौ राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया था। इससे पहले जनता पार्टी की सरकार ने 1977 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस शासित आठ राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया था।
जब श्रीमती गांधी ने महाराष्ट्र सरकार को पहली बार बर्खास्त किया था, उस समय प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन के नेता के तौर पर शरद पवार प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। श्री पवार 18 जुलाई 1978 से 17 फरवरी 1980 तक मुख्यमंत्री रहे थे।
राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन वर्ष 2014 में लगाया गया, जब कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण ने राकांपा के गठबंधन से बाहर निकलने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। भाजपा नेता देवेंद्र फडनवीस के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति शासन समाप्त हो गया था।

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