मोदी के इस फरमान से लोकतंत्र का एक और स्तंभ होगा धराशायी

मोदी सरकार IAS डेपुटेशन के नियमों में ऐसा बदलाव कर रही है, जिससे लोकतंत्र का एक और एक स्तंभ धराशायी हो जाएगा। गैरभाजपा शासित राज्यों के सीएम कर रहे विरोध।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आईएएस प्रतिनियुक्ति के नियमों में ऐसा बदलाव कर रही है, जिससे वह जब चाहेगी, जिसे चाहेगी, उस आईएएस अधिकारी को रातों रात राज्य से केंद्र में बुला लेगी। इस प्रस्तावित बदलाव के विरोध में बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल, तमिलनाडु के सीएम स्तालिन, केरल के सीएममुख्यमंत्री पी. विजयन और अब तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने भी विरोध का बिगुल फूंक दिया है।

आईएएस रूल्स में बदलाव के असर को दो उदाहरण से समझा जा सकता है। 2001 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता थीं। उन्होंने राज्य मे विरोधी दल के नेता करुणानिधि और अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल सहयोगी रहे मुरासोली मारन के यहां सीआईडी का छापा मरवाया। इसके बाद केंद्र सरकार ने तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्र में भेजने का निर्देश दिया। इस निर्देश को जयललिता ने मानने से इंकार कर दिया। स्पष्ट है, केंद्र में सत्ता वाली पार्टी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते। बंगाल में ममजा बनर्जी के साथ भी ऐसा ही हुआ। बंगाल चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष नड्डा के काफिले पर तथाकथित हमले के बाद केंद्र ने तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्र में भेजने का निरेद्श दिया, जिसे ममता ने मानने से इंकार कर दिया।

अब मोदी सरकार के नए रूल्स से आईएएस-आईपीएस कैडर स्वतंत्रतापूर्वक काम नहीं कर सकेंगे। वे राज्य सरकार के बजाय केंद्र सरकार का मुंह देखकर काम करेंगे। यह राज्यों की स्वायत्तता और सहकारी संघवाद को कमजोर करेगा। सभी मुख्यमंत्रियों ने मोदी को लिखे पत्र में इस मुद्दे को उठाया है। ऐसा हुआ, तो कार्यपालिका जैसा लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ ध्वस्त हो जाएगा। यह देश में एकाधिकारवाद, निरंकुशता को बढ़ावा देगा। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच मतभेद और संघर्ष का यह नया अध्याय है। देखना है कि मोदी सरकार देश के कई मुख्यमंत्रियों की आवाज सुनते हैं या आवाज दबाकर अपने फैसले को लागू करते हैं।

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