मोदी नहीं बनेे मंत्री, लालू को कोसना काम न आया

सुशील मोदी के लिए इससे बुरा दिन नहीं हो सकता। आठ महीना पहले उपमुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई। और अब केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में भी जगह नहीं।

सुशील मोदी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने की तीन वजहें हो सकती हैं। पहला, उनकी छवि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के परम सहयोगी के रूप में रही है। वाजपेयी की भाजपा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सुशील मोदी दोनों की वाजपेयी के साथ करीबी थी। अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह का जमाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वह रिश्ता नहीं है, जो वाजपेयी के साथ था। नरेंद्र मोदी का भोज कैंसिल होना साधारण बात नहीं थी। तो क्या सुशील मोदी की नीतीश से करीबी ही उनकी राह में रोड़ा बना?

सुशील मोदी की पहचान दिन-रात लालू परिवार को कोसनेवाले नेता की है। वे लालू, तेजस्वी ही नहीं, रोहिणी आचार्य पर भी टिप्पणी करने से नहीं चूकते। बिहार में कोविड की दूसरी लहर में भी वे कुछ खास करते नहीं दिखे। वे लालू विरोधी छवि के कैदी बन कर रह गए हैं। रोजगार, बाढ़ जैसी अनेक पीड़ा बिहार की है, लेकिन उनका कोई हस्तक्षेप नहीं दिखता। भाजपा में वे क्षत्रप की हैसियत भी नहीं रखते। पिछले महीनों में उन्होंने बस दो ही काम किए-लालू विरोध और प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन। लगता है ये दोनों काफी साबित नहीं हुए।

पिछले नवंबर में उनके हाथ से उपमुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई। उस समय उनकी पीड़ा झलकी थी, जब उन्होंने कहा था कि उपमुख्यमंत्री नहीं बना, पर कार्यकर्ता का पद कोई छीन नहीं सकता। बाद में उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें जगह मिलेगी। लेकिन वहां से तो कोई आमंत्रण ही नहीं आया।

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तीसरी वजह यह हो सकती है कि बिहार में चुनाव तो होना नहीं है। इसलिए उनका नंबर नहीं आया। 2019 में बिहार से छह केंद्रीय मंत्री थे। रामविलास पासवान के निधन के बाद पांच मंत्री रहे। अब भी पांच ही रहे।

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