शायद यह श्याम रजक रहे हों.या फिर रामकृपाल यादव.2005 में जब नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली तो ‘सुशासन’ शब्द हर भाषण में इस्तेमाल करते थे.इसी लिए राम और श्याम की जोड़ी (रामकृपाल व श्याम रजक) ने कटाक्ष के तौर नीतीश कुमार को सुशान बाबू का उपनाम दे दिया.

Nitish kumar, inner conciance ,
नीतीश कुमार: कभी जागेगी अंतरात्मा?

[author image=”http://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]

बाद में सत्तामोह के शिकार हुए श्याम, जदयू के रास्ते मंत्रिपद तक पहुंचे. उधर रामकृपाल सामाजिक न्याय का कुर्ता उतार कर भगवाधारी बन गये. यह अलग कहानी है,

खैर, नीतीश एक माहिर सियासतदां साबित हुए. उन्होंने राम-श्याम की जोड़ी के कटाक्ष को सकारात्मक बना दिया. अपने सुशासनी काम से कम परंतु मीडिया प्रबंधन के कौशल के बूते ज्यादा. खुद को ‘सुशासन बाबू’ कहलाने में बुराई क्या थी?  अपने पहले कार्यकाल में नीतीश ने ‘कानून का राज’, दूसरे कार्यकाल में ‘न्याय के साथ विकास’ जैसे नारे गढ़े. अपराध पर नियंत्रण से ज्यादा उन्होंने अपराध के सिम्बॉलिज्म पर हमला किया. आनंद मोहन और शाहबुद्दीन जैसों को अरेस्ट करवा कर और उनके खिलाफ स्पीडी ट्रॉयल करवा कर अंदर कराया. लेकिन उस दौर में भी नीतीश ने अपराध के उन आरोपियों पर मेहरबानियां लुटाईं जो उनकी राजनीतिक यात्रा के सहचर बन गये. शहाबुद्दीन और आनंद मोहन, नीतीश के विरोध में थे, सो नपते चले गये. हालांकि तब जोरदार चर्चा समानांतर रूप से चलती थी कि अगर वे दोनों नीतीश की रहनुमाई स्वीकार कर लेते तो उन्हें ऐसे हस्र का सामना न करना पड़ता.

 सुशानी चेहरे के पीछे 

वक्त बीतता रहा. अपनी सुशासनी छवि में चमक पैदा करने के लिए नीतीश ने आईपीआरडी जैसे विभाग खुदके हवाले कर दिया. इससे पहले अमूमन मुख्यमंत्री पद पर बैठा नेता सिर्फ सामान्य प्रशासन, गृह विभाग या कार्मिक जैसे महकमे ही अपने पास रखता था. लेकिन संभवत: नीतीश अपवाद थे. उन्होंने सूचना एंव जनसम्पर्क विभाग(आईपीआरडी) के माध्यम से अखबारों को साधा. बिहार और यूं कहें कि भारत भर के अखबारों के पहले पेज पर अपने मुस्कुराते चेहरे के साथ विज्ञापन लुटाते रहे. इतना ही नहीं अनेक बार विदेशी अखबारों में भी बिहार सरकार का विज्ञापन छपता रहा. पूरा भारत, बिहार के ‘सुशासनी’ और देश में ‘सर्वाधिक विकास दर’ की आंधियों के विज्ञापनी चपेट में आता चला गया.

वक्त बीतता रहा. नीतीश, नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए उनके मद्देमुकाबिल खड़े होने का सपना संजोने लगे. पर ये सपना जल्द ही दिवास्वप्न बन गया. मोदी की आंधी ने सबकुछ ध्वस्त कर दिया. तब नीतीश ने बलिदानी स्टेट्समैन बनने की राह अपनाई. इसके लिए  नीतीश ने महाराज बन मांझी को राजपाट सौंप दिया. पर उनकी अंतरात्मा जाग पड़ी. चंद महीनों में सत्ता की तूफानी चाहत ने हिलोरें मारी. मांझी को बेदखल किया. और सत्ता की सुलगती चाह उन्हें लालू प्रसाद के करीब ले आयी. लालू ने दरिया दिली दिखाई. साम्प्रदायिक शक्तियों को प्रास्त करने के लिए नीतीश को कुर्सी सौंप दी.

वक्त बीतता रहा. नीतीश की अंतरात्मा ने सोना छोड़ दिया. अंतरात्मा हमेशा जागती रही. मिट्टी घोटाला, मॉल घोटाला और यहां तक कि रेलवे होटल घोटाला जैसे कथित भ्रष्टाचार की बोतलों से जिन्न को बाहर निकाला गया. नीतीश की अंतरात्मा जागती रही. और फिर नीतीश की जागती अंतरात्मा ने उन्हें रातों रात भाजपा में घरवापसी के लिए मजबूर कर दिया. रात के अंधियारे में राजभवन पहुंचे. और भाजपा के गंगाजल में स्नान करके पवित्र हो जाने की शपथ ले ली.

लेकिन शपथ लेने के अगले ही सप्ताह, एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के सृजन घोटाला उजागर हो गया. जदयू के युथ विंग के जिला अध्यक्ष समेत भाजपा के किसान सेल के उपाध्यक्ष का नाम सामने आया. पर्दे के पीछ जदयू के एक बड़े नीतिकार के फंसने के किस्से सामने आने लगे. आननफानन में इस घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी. उसी सीबीआई को जिसे सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का तोता कह रखा है. सीबीआई इस जांच को अपने जिम्मे ले कर सोई तो अब तक नहीं जागी. तब लालू ने आशंका जताई कि सृजन घोटाला में फंसने के डर से नीतीश भाजपा की शरण में चले गये.

घोटाले- लिस्ट अधूरी है

इससे पहले की आगे की बात की जाये. नीतीश कार्यकाल के कुछ घोटालों की फेहरिस्त की याद ताजा कर ली जाये. बच्चादानी घोटाला, टॉपर्स घोटाला, मेधा घोटाला, सृजन घोटाला, महादलित घोटाला, मनरेगा योजना घोटाला, शिक्षक नियोजन घोटाला, केसीसी घोटाला, प्रधानमंत्री आवास घोटाला, दवा घोटाला… लिस्ट अधूरी है और जांच भी अधूरी. बदलाव सिर्फ यह है कि नीतीश की जागती अंतरात्मा सोयी हुई, अकसर अंतरात्मा तभी सोती है जब क्राइम या क्रप्शन उनकी सरकार में सामने आते हैं.

वक्त बीतता रहा. नीतीश अब एक नये नारे के साथ सामने हैं- ‘क्राइम, क्रप्शन औ कम्युनलिज्म से कोई समझौता नहीं करेंगे’.  बिहार फिलवक्त इसी नारे की चपेट में है. तब भ्रष्टाचार, अपराध की घिनावनी चाश्नी में लिटा शेल्टर होम बलात्कार बिहार के माथे परकलंक बनके सामने है. निवर्तमान समाज कल्याण मंत्री को पद छोड़ना पड़ा है. एक अन्य पूर्व समाज कल्याण मंत्री( दामोदर रावत) का गिरेबान जांच एजेंसी के हाथ में आ चुका है. बलात्कार पीड़ित चार दर्जन बेटियों की चीख से देश की नींद हराम हो चुकी है. पर सोयी हुई है तो नीतीश की अंतरात्मा.

By Editor