परिषद चुनाव के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी-बड़ी रैलिया क्यों?

आप याद करिए आज से पहले विधान परिषद चुनाव में कभी इस तरह दल के प्रमुख नेता मैदान में उतरे हैं, क्या इस तरह बड़ी रैलियां हुई हैं? क्या है रहस्य?

कुमार अनिल

बिहार विधान परिषद की 24 सीटों के लिए चुनाव में बस दो दिन बचे हैं। एक सवाल पर विचार करिए। इस चुनाव में मतदाता आम लोग नहीं होते। मतदाता होते हैं जिला और पंचायत परिषद के सदस्य, नगर परिषद या नगर पंचायत के पार्षद, मुखिया और वार्ड सदस्य। मधेपुरा में 2541 मतदाता हैं। वैशाली में 4555 मतदाता 16 बूथों पर मतदान करेंगे। इसी तरह अन्य जिलों में भी मतदाता हैं। इतने कम मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए इतनी बड़ी -बड़ी रैलियां आखिर क्यों हो रही हैं? शुरुआत विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने की। उसके बाद जदयू और भाजपा के भी राज्य और राष्ट्रीय नेता जिलों में सभाएं कर रहे हैं। जदयू-भाजपा ने प्रखंड तक का प्रभारी विधायकों को बनाया है। मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई है। आज से पहले परिषद चुनाव में इतनी गहमागहमी कभी नहीं रही।

इसकी चार वजहें हो सकती हैं। राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने बताया कि विधान परिषद में पार्टी के सिर्फ पांच सदस्य हैं- राबड़ी देवी, रामचंद्र पूर्वे, रामबली चंद्रवंशी, मो. फारुखी तथा सुनील सिंह। निकाय कोटे से राजद के केवल एक सदस्य थे। इसीलिए राजद के पास खोने को कुछ नहीं है, पाने को बहुत कुछ है। तीन और सदस्य जीतने पर विपक्ष के नेता का दर्जा मिल जाएगा। मालूम हो कि परिषद में 75 सदस्य हैं, जिनमें 24 सीटों पर चुनाव हो रहा है। वैसे निकाय कोटे से पिछली बार राजद के चार कदस्य जीते थे, जिनमें तीन बाद में जदयू में चले गए। सिर्फ वैशाली से सदस्य सुबोध कुमार साथ रहे।

राजद प्रवक्ता ने इस बार विशेष गहमागहमी के तीन कारण बताए। पार्टी ने विधान परिषद चुनाव को भी जन अभियान बना दिया। इसे भी उसने सरकार विरोधी गोलबंदी का जरिया बना दिया। चूंकि तेजस्वी यादव पहले मैदान में उतर गए, तो सत्ता पक्ष की भी मजबूरी हो गई। दूसरा इससे सरकार के खिलाफ लोगों की भावनाओं को स्वर मिलेगा। सरकार पर जनहित के लिए दबाव बनेगा। और अंतिम तौर पर राजद की जीत से परिषद में भी विपक्ष की आवाज मजबूत होगी, जिससे जनता के मुद्दे पर दोनों सदनों में आवाज उठाई जा सकेगी।

राजद प्रवक्ता ने जिन बातों को वजह बताई, उनके अलावा यह भी माना जा रहा है कि हर दल चुनावी मोड में रहना चाह रहा है। पता नहीं, बिहार में कब क्या हो जाए। इसलिए हर दल चुनावी मोड में है। रैलियों में भीड़ की वजह पंचायत प्रतिनिधियों की सक्रियता भी है। उनकी निष्ठा जिस दल से है, उसमें वे सक्रिय दिखना चाहते हैं, ताकि दल में उनकी प्रतिष्ठा बनी रहे, जो आगे उनके राजनीतिक भविष्य के लिए जरूरी है।

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