पटना में हलचल : क्या कुशवाहा बनेंगे डिप्टी CM, दबाव की राजनीति!

चर्चा है कि मकर संक्रांति के बाद नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार होगा और उपेंद्र कुशवाहा डिप्टी सीएम बन सकते हैं। क्या यह कुशवाहा की दबाव की राजनीति है?

कुमार अनिल

पटना में इस बात की खूब चर्चा है कि 14 जनवरी के बाद बिहार में नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा डिप्टी सीएम बन सकते हैं। मतलब बिहार में दो डिप्टी सीएम होंगे। तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा। इस चर्चा को खुद उपेंद्र कुशवाहा के बयान से बल मिला। पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या वे डिप्टी सीएम बनेंगे, तो उन्होंने जवाब दिया कि हम कोई संत तो नहीं हैं, राजनीतिज्ञ हैं। साफ है कि उन्होंने इस चर्चा को खारिज नहीं किया, बल्कि हवा ही दी। कुशवाहा 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा का भोज दे रहे हैं। इसे भी राजनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है।

बड़ा सवाल यह है कि उपेंद्र कुशवाहा को डिप्टी सीएम बनाने का निर्णय क्या नीतीश कुमार का है, क्या महागठबंधन के दलों खासकर राजद की सहमति है या डिप्टी सीएम की चर्चा के जरिये उपेंद्र कुशवाहा दबाव की राजनीति कर रहे हैं?

उपेंद्र कुशवाहा को डिप्टी सीएम बनाने का फैसला नीतीश कुमार बिना राजद की सहमति के नहीं कर सकते हैं। सवाल है कि राजद क्यों चाहेगा कि तेजस्वी के रहते हुए एक और डिप्टी सीएम कोई बने। हां, उपेंद्र कुशवाहा डिप्टी सीएम तब बनें, जब तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनें, ऐसा संभव हो सकता है, लेकिन आज की स्थिति में दो डिप्टी सीएम पर शायद ही राजद की सहमति हो।

यह भी हो सकता है कि उपेंद्र कुशवाहा दवाब की राजनीति कर रहे हों। अगर उन्हें डिप्टी सीएम नहीं बनाया जाता है, तो वे फिर से रालोसपा को जीवित कर सकते हैं। तकनीकी रूप से रालोसपा का अस्तित्व अभी भी है। रालोसपा के जरिये वे एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं। इस समझ के पीछे माना जाता है कि भाजपा चाहती है कि उपेंद्र कुशवाहा जदयू छोड़ कर उनके साथ आएं। ऐसा 2024 के लिए फायदेमंद रहेगा। खुद उपेंद्र कुशवाहा भी भाजपा और संघ के खिलाफ उतने मुखर नहीं लगते, जितना जदयू के अन्य नेता है।

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