राज्य के अस्पतालों पर नजर रखने वालों को पता है कि दस महीने स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए तेज प्रताप ने महकमे में गतिशीलता लाई थी. डॉक्टर-नर्स सतर्क रहने लगे थे कि कब मंत्री किस अस्पताल में आ धमकें. निजाम बदला तो तेज अब सिर्फ दो कारणों से चर्चा में रहते हैं- एक विवादों के लिए, दूसरा- पॉपुलर पॉलिटक्स के लिए.

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

 

लोक तंत्र की सियासत वोटों का बीजगणित है. इसके लिए पॉपुलर पॉलिटिक्स जरूरी भी है. यकीनन तेज प्रताप ने राजनीति के बीजगणित को सही पकड़ा और पॉपुलर पॉलिटिक्स के लिहाज से  बिहार की मौजूदा सियासत में तमाम लीडरों को पीछे भी छोड़ दिया. कभी कभी पॉपुलर पॉलिटिक्स सत्ता में रहते हुए भी कारगर हुआ करती है. जैसा कि मंत्री रहते हुए तेज प्रताप ने दिखाया. अस्पतालों का औचक नीरिक्षण. साफ-सफाई व दवाई के इंतजाम पर पैनी निगाह रखना. आधी रात को ड्युटी में लगे डॉक्टरों व नर्सों  के गायब होने की खबर मिलते ही अस्पताल में जा धमकना. ये सब काम करके तेज प्रताप ने स्वास्थ्य़ व्यवस्था में अकाउंटबिलिटी और गतिशीलता लाई थी. पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि सिर्फ पॉपुलर पॉलिटक्स के सहारे, एक नेता लम्बी रेस का घोड़ा बन सकता है?

रिक्शे की सवारी करना, सार्वजनिक चांपाकल पर बालटी भर के नहाने लगना, मंच पर बांसुरी की तान सुनाना,लोगों में बैठ कर सत्तू खाना, खिलाना. तेज प्रताप ने पॉपुलर पॉलिटिक्स को अपनी राजनीति का हिस्सा बना डाला है. ऐसी खबरें देखी और पढ़ी भी जाती हैं. नेशनल मीडिया भी ऐसी खबरों को परोसने से खुदको रोक नहीं पाते.

संसदीय राजनीति के शुरुआती दिनों में तेज प्रताप की राजनीति का यह रंग लोगों के लिए आकर्षण की वजह बनता गया और तेज इस क्रम को आगे बढ़ाते गये.

ऐसी पॉलिटिक्स लालू भी करते थे. पर उनके लिए यह सब, आम लोगों में रचने-बसने का एक तरीका था. तेज प्रताप यादव दूसरी पीढ़ी के नेता हैं. समय काफी बदल चुका है. तो क्या लोग अब भी पॉपुलर पॉलिटिक्स के इस चलन को स्वीकार करेंगे? ऐसी पॉलिट्क्स पॉपुलरिटी के लिए काफी तो जरूर है पर क्या ऐसी सियासत तेज प्रताप को लम्बी रेस का घोड़ा बना पायेगा? ये ऐसे सवाल हैं जिनके बारे में तेज प्रताप यादवको अपने सहयोगियों के साथ मंथन करने की जरूरत है.

आप गैर से देखें, तो पायेंगे कि तेज राजनीतिक चर्चाओं में इन जैसे कारणों के लिए ही रहते हैं. इसका एक नुकसान यह है कि उनकी छवि गंभीर लीडर के रूप में उभर नहीं पा रही है. नयी पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी से काफी बदल चुकी है. वह लीडर में गंभीरता तलाशती है. वह यह खोजती है कि एक नेता समाज के गंभीर मुद्दे पर क्या अप्रोच रखता है. राजनीति के कठिन डगर में आने वाली समस्याओं को कैसे सुलझाता है. अपनी तर्कशक्ति से विरोधियों को कैसे पटखनी देता है. और इन सबसे अलग नयी पीढ़ी नेतृत्व क्षमता की उस विधा को तलाशती है जिसके बूते एक नेता दिलों पर राज कर सके.

 

तेज प्रताप एक दूसरे कारण से भी चर्चा में रहते हैं. वह अपने साथ विवादों को लिए फिरते हैं. एक बार उन्होंने एक सभा में पत्रकार से भिड़ गये थे. बुजुर्ग नेताओ ने तब मामले को रफा दफा किया था. उसके बाद पिछले कुछ दिनों में दुनिया ने देखा कि पाटी के अंदर अपनी उपेक्षा को ले कर विवादों में घिरे. इससे विरोधियों को हमला करने का बहाना मिला. फिर दोबारा तेज अपने फेसबुक पोस्ट के लिए विवादों में आ गये, जब उन्होंने तंग आ कर सियासत से संन्यास लेने तक की बात कह डाली. फिर समझाने-बुझाने पर पोस्ट को हटाना पड़ा.  सियासत की लम्बी पारी खेलने के लिए जरूरी है कि संगठन में एकता, न सिर्फ बनी रहे, बल्कि दिखे भी. जब तेज, अपने छोटे भाई को मुकुट पहनाते हैं तो यह संदेश जाता है कि वह संगठन को मजबूत करने में भी गंभीर हैं, लेकिन समय-समय पर उनके कुछ बयान पार्टी व संगठन के लिए असहज करने वाले भी हो जाते हैं.

मुझे लगता है कि तेज प्रताप यादव को खुद को इस पॉपुलर पॉलिटिक्स व विवादों से आगे की सोचना चाहिए. उन्हें गंभीर मुद्दों को उठाना चाहिए. गंभीर छवि गढ़नी चाहिए, जो कि अब तक लोगों को दिखी नहीं है. एक बार जब आपकी छवि स्थापित हो जाती है तो फिर उसकी परछाई से निकल पाना मुश्किल हो जाता है. इसलिए अब पॉपुलर और न्यूज मेकिंग के इस रंग की जगह गंभीर सियासत के रंग को चढ़ाइए तेज भाई. वरना बाद में मुश्किल होगी

By Editor