राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को शुक्रवार को यहां आठ खंडों में प्रकाशित हिंदी साहित्य ज्ञान कोश भेंट किया गया। श्री कोविंद ने इसके प्रकाशन पर गहरी प्रसन्नता व्यक्त की है और उम्मीद जताई है कि हिंदी में ज्ञान विज्ञान इसी तरह समृद्ध होगा और पाठकों की जानकारियां बढ़ेंगी।

भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष कुसुम खेमानी के नेतृव में एक शिष्टमंडल ने श्री कोविंद से राष्ट्रपति भवन में मिलकर यह ग्रंथ भेंट किया। इसमें इस ग्रंथ के प्रधान संपादक डॉ. शम्भूनाथ, सन्मार्ग अखबार के प्रधान संपादक एवम पूर्व सांसद विवेक गुप्ता और वाणी प्रकाशन के संचालक अरुण माहेश्वरी भी मौजूद रहे।

डॉ. शंभूनाथ ने पत्रकारों से कोश की निर्माण प्रक्रिया पर बातचीत करते हुए बताया कि डॉ. धीरेंद्र वर्मा द्वारा साठ के दशक में एक साहित्य कोश बना था उसके 60 वर्षों बाद यह दूसरा एवम आधुनिक ज्ञान कोश है जिसमें हिन्दी साहित्य, दर्शन, इतिहास, आलोचना आदि सभी विषयों को समाहित किया गया है। जो शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों, शिक्षकों के अतिरिक्त आम पाठकों के लिए भी उतना ही लाभप्रद होगा। हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश पूरे हिन्दी संसार की उपलब्धि है।

उन्होंने बताया कि 1958 से 1965 के बीच धीरेन्द्र वर्मा द्वारा बना ‘हिन्दी साहित्य कोश’ करीब पचास साल पुराना हो चुका था। इसके अलावा, आज साहित्य का अर्थ विस्तार हुआ है। साहित्य आज भी ज्ञान का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानवीय रूप है। यह आम नागरिकों के लिए पानी और मोबाइल की तरह जरूरी है।

हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश में 2660 प्रविष्टियाँ हैं। यह 4560 पृष्ठों का है। इसमें हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित इतिहास, साहित्य सिद्धान्त आदि के अलावा समाज विज्ञान, धर्म, भारतीय संस्कृति, मानवाधिकार, पौराणिक चरित्र, पर्यावरण, पश्चिमी सिद्धान्तकार, अनुवाद सिद्धान्त, नवजागरण, वैश्विकरण, उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श आदि कुल 32 विषय हैं। ज्ञानकोश में हिन्दी राज्यों के अलावा दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्व और अन्य भारतीय क्षेत्रों की भाषाओं-संस्कृतियों से भी परिचय कराने की कोशिश है। इसमें हिन्दी क्षेत्र की 48 लोक भाषाओं और कला-संस्कृति पर सामग्री है। पिछले पचास सालों में दुनिया में ज्ञान के जो नये विस्फोट हुए हैं, उनकी रोशनी में एक तरह से भारतीय भाषाओं में हिन्दी में बना यह पहला ज्ञानकोश है। देश भर के लगभग 275 लेखकों ने मेहनत से प्रविष्टियाँ लिखीं और उनके ऐतिहासिक सहयोग से ज्ञानकोश बना।

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