राहुल की मुहिम को बिहार में झटका, जिला अध्यक्षों में 66 % सवर्ण

राहुल की नई कांग्रेस बनाने की मुहिम को बिहार में लगा ब्रेक। रायपुर अधिवेशन में 50 प्रतिशत पिछड़े, दलित को जगह देने के उल्टा बिहार में सवर्णों की भरमार।

राहुल गांधी की नई कांग्रेस बनाने की मुहिम को बिहार कांग्रेस ने मानने से इनकार कर दिया है। राहुल ने कर्नाटक चुनाव में जाति जनगणना, आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत को समाप्त करने जैसे मुद्दे उठाए। कांग्रेस के रायपुर सम्मेलन में तय हुआ था कि हर स्तर पर पार्टी कमेटियों में 50 प्रतिशत दलित, आदिवासी, पिछड़े तथा मुस्लिमों को स्थान दिया जाएगा। इसके विपरीत बिहार कांग्रेस ने जिन 39 सांगठनिक जिलों के अध्यक्ष बनाए हैं, उनमें 66 प्रतिशत सवर्ण हैं। 39 में 11 भूमिहार जाति के हैं। इसी जाति से प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह आते हैं। उन पर रायपुर अधिवेशन के संकल्प के विपरीत काम करने के आरोप लग रहे हैं। जिला अध्यक्षों में 11 भूमिहार के अलावा 8 ब्राह्मण, 6 राजपूत और एक कायस्थ को जिला अध्यक्ष बनाया गया है। कुल 26 सवर्ण। वहीं 5 मुस्लिम, 4 यादव, तीन दलित तथा एक कुशवाहा को जिला अध्यक्ष बनाया गया है कुल 13।

कल ही कर्नाटक में मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। 24 नए मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें 23 पिछड़े, दलित और मुस्लिम हैं। सिर्फ एक ब्राह्मण को मंत्री बनाया गया है। कर्नाटक में कांग्रेस पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समीकरण पर काम कर रही है। इसे अहिंदा समीकरण भी कहा जाता है। कई सर्वे में आ चुका है कि सवर्ण खासकर भूमिहार और ब्राह्मण भाजपा के कोर वोटर हैं। फिलहाल उनमें कोई परिवर्तन की संभावना भी नहीं देखी जा रही। ऐसे में बिहार में सवर्णों पर जोर देना तात्कालिक राजनीति के लिहाज से भी सही नहीं कहा जा सकता।

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह पर आरोप लगा कि उन्होंने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से अलग अपने समर्थकों को जिलों की जिम्मेदारी दी है। आरोप लगने के बाद अखिलेश प्रसाद सिंह ने शनिवार को सफाई दी और कहा कि उन्होंने योग्य नेताओं को अध्यक्ष बनाया है। अध्यक्ष बनाने का आधार योग्यता है। इसके बाद भी सवाल उठ रहे हैं कि इस योग्यता की परिभाषा क्या है? जाहिर है, इसका कोई जवाब उनके पास नहीं होगा। यह भी सवाल है कि क्या पिछड़े -दलित और अल्पसंख्यक नेताओं में योग्य नेताओं की कमी है? अगर कमी है, तब भी उन्हें ही मौका मिलना चाहिए। यही सामाजिक न्याय का सिद्धांत है। इसी तरह से पिछड़े दलितों के बीच से नेतृत्व का विकास होगा। उन्हें मौका ही नहीं दिया जाए तो उनकी योग्यता का विकास कैसे होगा?

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