मुजफ्फरपु बालिका गृह में महीनों तक 40 बच्चियों के साथ नियमित रेप मामले पर जहां नीतीश सरकार बचाव की मुद्रा में है वहीं विपक्ष आक्रामक है. इस जघन्य अपराध पर बड़े पैमाने पर लीपापोती की कोशिश हुई थी.

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

छिटपुट खबरें मीडिया में आयी और नियमित खबरों की तरह आंखों से ओझल हो चुकी थी. लेकिन तेजस्वी ने सदन से ले कर सड़क तक  उठा कर इसे बड़ा इश्यु बनाने में लगे हैं.

इसी क्रम में आज तेजस्वी मुजफ्फरपुर के उस शेल्टर होम में जा रहे हैं जहां इस अपराध को नियमित रूप से किया जाता था. सेव संकल्प नाम एनजीओ के माध्यम से, सरकारी धन से संचालित इस शेल्टर होम को ब्रजेश ठाकुर चलाते हैं. वह एक अखबार प्रात:कमल के मालिक भी हैं. इस मामले में ब्रजेश समेत 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. लेकिन इस मामले में अभी तक जितनी गिरफ्तारियां हुई हैं उनमें ब्रजेश को छोड़ कर सबके सब छोटी मछलियां हैं. पीएमसीएच की मेडिकल रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की जा चुकी है कि वहां की कमसे कम 29 बच्चियों के साथ नियमित रूप से रेप किया जाता रहा था.

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शेल्टर होम में दर असल वैसी लड़कियां निवास करती हैं जो समाज में पहले से ही सताई और प्रताड़ित की गयी बच्चियां हैं. ऐसे में इन बच्चियों की मनोवैज्ञानिक कॉउंसिलिंग के नाम पर कुछ लोगों के हवाले करने का भी आरोप सामने आया है. काउंसिलिंग के नाम पर यौन शोषण की बात खुद बच्चियों ने ही जांचकर्ताओं को बताया है. लेकिन अभी तक इन रेपिस्टों में से किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है. बताया जाता है कि ये रसूखदार सफेदपोश लोग हैं. राजद का आरोप यहां तक है कि इनमें से ज्यादातर लोग या तो बड़े पदों पर बैठे अधिकारी हैं या भाजपा जदयू के शक्तिशाली नेता हैं.  विपक्ष यह आरोप लगाता है कि इस मामले की जां करके रेपिस्टों को कानून के शिकंजे में लेने  के बजाये सरकार और उसकी पुलिस इस पर लीपापोती करना चाहते हैं. विपक्ष के इस आरोप को महज राजनीतिक बयान मान लेना मुर्खता है. इस जघन्य अपराध  के तार जिन लोगो से भी जुड़ें हैं उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए. इस मामले में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि अगर राज्य सरकार इसकी जांच सीबीआई से कराना चाहे तो इसकी जांच कराई जा सकती है. लेकिन नीतीश सरकार ने अपने डीजीपी को इस मामले में प्रेस कांफ्रेंस के लिए आगे किया और उन्होंने साफ कह दिया कि स्टेट पुलिस ही जांच करेगी. सीबीआई जांच से भागने पर आम लोगों का संदेह और बढ़ता जा रहा है. तेजस्वी ने भी उधर नीतीश से पूछा है कि  नीतीश सरकार सीबीआई जांच से क्यो भाग रही है? नीतीश कुमार क्यों इस मामले में घबराये और डरे हुए हैं?

साक्ष्य मिटाने की कोशिश

आरोप तो यहां तक लगाया जा रहा है कि नीतीश सरकार इस मामले में उन तमाम साक्ष्यों को मिटा देना चाहती है जिससे बड़े सफेदपोशों को पकड़े जाने के लिए आधार देते हैं. अगर इस आरोप को विपक्ष का राजनीतिक स्टैंड मान कर दरकिनार भले ही कर दें, लेकिन एक और महत्वपूर्ण सवाल है जो सरकारी मंशा पर सवाल खड़ा करता है. राज्य के शेल्टर होम की सोशल ऑडिट टाटा इस्ट्च्युट ऑफ सोशल साइंसेज ( टीआईएस) से कराई गयी थी. उसने अपनी रिपोर्ट मार्च में सरकार को सौंपी थी और बताया था कि मुजफ्फरपुर समेत अनेक शेल्टर होम में बच्चियों का यौन शोषण होता है. यहां गंभीर सवाल यह है कि तीन महीने तक सरकार ने इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की. क्यों इस मामले को तीन महीने दबाया जता रहा?

इस मामले में साफ लगता है कि सामाजिक कल्याण विभाग, जिसके अधीन ये शेल्टर होम चलते हैं, के अधिकारियों ने इस मामले को दबाये रखा. इस लिहाज से देखें तो अगर इस ममले में सरकार सीबीआई से जांच नहीं करायेगी तो खुद उसके ही कुछ आला अधिकारी व सफेदपोश नेता इस में फंसने से बचने का जुगत करते रहेंगे. ऐसे में तेजस्वी यादव के इस आरोप को नकारा नहीं जा सकता कि सीबीआई जांच कराने के फैसेल से पहले, राज्य की एजेंसियां कुछ खास और रसूखदार लोगों के खिलाफ मिलने वाले सुबोतों को मिटा देना चाहते हैं.

शेल्टर होम की दर्जन से ज्यादा बच्चियों के साथ नियमित यौन शोषण का मामला नीतीश सरकार की छवि पर बड़ा सवाल खड़ता जा रहा है. इस मामले की ईमानदारी से जांच तभी हो सकती है जब सीबीआई के हवाले इसे किया जाये.

 

 

 

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