शोध : सवर्णों से कम दिन जीते हैं आदिवासी, दलित व मुस्लिम

तीन अमेरिकी शोधकर्ताओं ने नया खुलासा किया कि भारत में आदिवासी, दलित व मुस्लिम सवर्णों के मुकाबले कम दिन जीते हैं। इसकी मुख्य वजह उपेक्षा व भेदभाव है।

भारत में आदिवासी- दलित और मुस्लिमों का जीवन सवर्णों की तुलना में कम है। इसकी वजह भाग्य का दोष नहीं, बल्कि हमारी नीतियां है। मुख्य वजह है सामाजिक बहिष्करण और भेदभाव। तीन अमेरिकी शोधकर्ताओं ने भारत सरकार के आंकड़े का ही विश्लेषण करके यह प्रमाणित किया है। इन तीनों समुदाय की आबादी भारत में 45 करोड़ से अधिक है।

कोलकाता से प्रकाशित द टेलिग्राफ ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। शोध के अनुसार इन तीनों समुदायों में सबसे कम उम्र आदिवासियों के हिस्से हैं। एक आदिवासी महिला की उम्र प्रत्याशा 62.8 वर्ष है, जबकि आदिवासी पुरुष औसतन 60 वर्ष जीते हैं। दलित महिला की औसतन उम्र 63.3 वर्ष होती है, जबकि दलित पुरुष का औसत जीवन 61.3 वर्ष ही होता है। मुस्लिम महिला की जीवन प्रत्याशा 66.5 वर्ष होती है, वहीं मुस्लिम पुरुष की जीवन प्रत्याशा 64.9 वर्ष होती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास की अर्थशास्त्री संगीता व्यास और उनकी टीम ने अपने रिसर्च में पाया कि भारत में सवर्णों की तुलना में आदिवासी-दलितों की जीवन प्रत्याशा में अंतर वैसा ही है जैसे अमेरिका में काले और गोरे में तथा इजराइल में अरब नागरिकों तथा यहूदियों में है। संगीता व्यास और उनकी सहयोगी पायल हथी तथा आशीष गुप्ता ने भारत सरकार के 2010-11 के हेल्थ सर्वें की रिपोर्ट को आधार बनाया है, जिसमें असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड सहित अनेक राज्यों के 40 लाख घरों से जुटाए आंकड़ों को दर्ज किया गया है।

भारत में आर्थिक अंतर हम अपने सामने देखते हैं। पटना में ऐसे लोग भी है, जो 80-90 रुपया लीटर वाला दूध पीते हैं। वे ड्राई फ्रूट्स भी खाते हैं, वहीं दलित मुहल्लों में दूध पीते शायद ही कोई मिले। आर्थिक गैर बराबरी के अलावा भारत में सामाजिक बहिष्करण भी प्रमुख मुद्दा है।

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