SaatRang : किसानों ने दिया न्यू इंडिया व हिंदुत्व का मुंहतोड़ जवाब

SaatRang में इस बार पढ़िए मजफ्फरनगर किसान महापंचायत ने क्यों भाजपा को भीतर तक हिला दिया। यह संख्या के हिसाब से ऐतिहासिक तो थी ही, दिए दो खास संदेश।

मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत में आए किसानों को चाय देते मुस्लिम बच्चे

5 सितंबर को देश ने एक नया मुजफ्फरनगर देखा। 2013 में जो मुजफ्फरनगर हिंदू-मुस्लिम नफरत से जल उठा था, भाजपा के हिंदुत्व की प्रयोगशाला के रूप में जाना गया, कल वही मुजफ्फरनगर देश को सुकून, भाईचारे, बदलाव, किसान और देश बचाने का संदेश दे रहा था।

1987 में मेरठ में भयानक सांप्रदायिक दंगा हुआ था, लेकिन राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों और गांवों की एकता टूटने नहीं दी थी। उन्होंने गांवों में दंगा फैलने नहीं दिया। एक साल बाद उन्होंने 5 अक्टूबर 1988 को वोट क्लब पर जो किसान रैली की, वह आज भी याद की जाती है। तब केंद्र सरकार हिल गई थी।

लगभग तीस साल बाद तारीख वही पांच थी, पर महीना सितंबर। इस बार किसानों ने फिर सत्ता को हिला कर रख दिया। संख्या के हिसाब से माना जा रहा है कि 20 लाख से ज्यादा किसान आए। मैदान ही नहीं, पूरा शहर किसानों से पटा था। संख्या के साथ ही इस महापंचायत ने मोदी सरकार को दो मोर्चों पर जबरदस्त चुनौती दी है। पहला, इसने न्यू इंडिया के नारे की हवा निकाल दी और दूसरा राजनीतिक हिंदुत्व का मुंहतोड़ जवाब दिया।

राकेश टिकैत ने महापंचायत में नारा दिया- अल्लाह हू अकबर और हर-हर महादेव। लाखों किसानों ने भी नारे को दुहराया। सोचिए, यह नारा देने के पीछे कितनी हिम्मत चाहिए। कोई नेता यह नारा लगाए, तो भाजपा के ट्रोल्स एक दिन में उसे पाकिस्तानी साबित कर देंगे और वर्षों तक याद दिलाएंगे, लेकिन राकेश टिकैत की इतनी बड़ी बात के बाद भी किसी ने ट्रोल करने की हिम्मत नहीं की।

यह कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि राकेश टिकैत और किसान आंदोलन ने पिछले नौ महीने में जो भाईचारे की फसल लगाई है, वह अब दिखने लगी है। किसान हर सभा में कहते रहे हैं कि उन्हें हिंदू-मुसलमान के नाम पर बांटा गया, पाकिस्तानी, खालिस्तानी कहा गया, लेकिन उनका धर्म एक ही है किसानी।

सिर्फ राकेश टिकैत की बात नहीं है, मुजफ्फरनगर में मुस्लिमों ने जिस तरह से आगे बढ़कर किसानों के लिए चाय, पानी और हलवा लंगर लगाया, वह भी बहुत कुछ कह रहा था। हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारा नया नारा बन गया है। साधारण किसान भी कह उठता है कि उन्हें पहले लड़ाया गया, अब वे सत्ता का खेल समझ गए हैं। अब आपस में नहीं लड़ेंगे, सत्ता से हक पाने के लिए लड़ेंगे। राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने भी महीनों से जो भाईचारा सम्मेलन किए, उसका भी असर है। जयंत के दादा चौधरी चरण सिंह ने भी जीवित रहते कभी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं होने दिया।

किसान महापंचायत का दूसरा संदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के न्यू इंडिया का पोल खोलनेवाला था। किसान नेताओं ने सिर्फ फसल की कीमत और तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की ही मांग नहीं की, बल्कि देश बचाने का सवाल उठाया। खुली चुनौती दी कि मोदी देश बेच रहे हैं, हम बेचने नहीं देंगे। मोदी रेल, एयरपोर्ट, रोड सब बेच रहे हैं, वे किसानों की जमीन भी कॉरपोरेट के हाथ बेचना चाहते हैं, जो हम नहीं होने देंगे।

मोदी सरकार के न्यू इंडिया के खिलाफ आज तक इतनी बड़ी गोलबंदी नहीं हुई थी। उनके पास कोई जवाब नहीं है। यूपी भाजपा के एक बड़े नेता ने सवालों का जवाब देने के बजाय कहा कि पंचायत में किसान नहीं थे, विपक्ष के लोग थे।

कुछ दिन पहले भाजपा ने एक पोस्टर जारी किया था, जिसमें एक बाहुबली किसानों से कह रहा था कि यूपी मत जइयो, वहां योगी है, बक्कल छुड़ा देगा। आज उस भाजपा के पास कहने को कुछ नहीं है।

किसान अब लखनऊ में मीटिंग करेंगे और 27 सितंबर को भारत बंद की योजना बनाएंगे। उन्होंने कहा है कि पूरे यूपी में किसानों की पंचायतें और बैठकें होंगी। सचमुच देश जिस दिन समझ ले कि मंदिर-मस्जिद के झगड़े, पाकिस्तान, तालिबान ये हमारा मुद्दा नहीं है, हमारा मुद्दा खेती, रोजगार, महंगाई, पढ़ाई, दवाई है, उस दिन आधी समस्या ऐसे ही हल हो जाएगी और जो भी, जिसकी भी सरकार बने, उसे काम करना होगा।

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