SaatRang : नीतीश ने ये किया, तो 2010 जैसे हो सकते हैं ताकतवर

दो बातें सब लोग मान रहे हैं। पहला कि यूपी चुनाव का देश पर पड़ेगा असर और दूसरा वहां भाजपा फंसी हुई है। नीतीश कुमार 2010 जैसे हो सकते हैं ताकतवर।

यूपी विधानसभा चुनाव का परिणाम देश की राजनीति को प्रभावित करेगा। यह भी माना जा रहा है कि वहां भाजपा फंसी हुई लग रही है। यूपी चुनाव का बिहार पर भी असर पड़ना तय है। अगर वहां भाजपा हार गई, तो यह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए बड़ा मौका होगा।

भाजपा और जदयू का संबंध बड़ा जटिल है। 2010 के विधानसभा चुनाव में स्थिति यह थी कि भाजपा के प्रत्याशी भी नीतीश कुमार के नाम पर चुनाव लड़ रहे थे। हर भाजपा प्रत्याशी चाहता था कि उसके प्रचार के लिए एक बार नीतीश उसके क्षेत्र में आएं। तब जदयू को 115 और भाजपा को 91 सीटों पर जीत मिली थी। एनडीए को 243 सीटों में तीन चौथाई 206 सीटें मिली थीं।

2020 में स्थिति बदल गई। जदयू के अधिकतर प्रत्याशी नीतीश कुमार से अधिक नरेंद्र मोदी का पोस्टर लेकर प्रचार कर रहे थे। चाहते थे कि उसके क्षेत्र में भाजपा के कोई बड़े नेता आएं। हिंदुत्व के उभार और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी। माना जा रहा था कि जदयू का आधार वोट भी भगवा रंग में रंग गया है। भले ही जदयू की हार की एक वजह चिराग बने हों, पर यह भी वास्तविकता है कि अतिपिछड़ों में भाजपा ने अपना प्रभाव बढ़ा लिया था।

अब स्थितियां फिर पलटी हैं। पहले बंगाल में सरकार बनाने का सपना भाजपा का टूट गया और पिर महंगाई सहित अनेक मुद्दों के कारण भाजपा के खिलाफ रोष बढ़ा है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है, जो कई सर्वे में सामने आया है। इस स्थिति में अगर भाजपा यूपी चुनाव हार जाती है, तो नीतीश कुमार के लिए बड़ा अवसर होगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कृषि, उद्योग, रोजगार के क्षेत्र में कुछ बड़ा करने की स्थिति में नहीं हैं। शराबबंदी भी उनके कद को ऊंचा उठाने में अब सफल नहीं हो सकती। ऐसे में नीतीश कुमार जातीय जनगणना कराने की घोषणा कर सकते हैं। प्रदेश में जातीय जनगणना कराने का फैसला लेकर इसे वे राजनीतिक मुद्दा बना सकते हैं।

यह भी स्पष्ट है कि केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने से इनकार कर दिया है। बिहार में भाजपा नहीं चाहती कि जातीय जनगणना हो। यूपी चुनाव में हार के बाद बिहार में भाजपा इस स्थिति में नहीं रहेगी कि वह नीतीश के फैसले का विरोध कर सके। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कभी नहीं चाहेगा कि नीतीश जैसे सहयोगी को वह खो दे। फिर 2024 में लोकसभा चुनाव का सवाल भी होगा कि नीतीश को नाराज करके मोदी अपनी कुर्सी के लिए मुश्किल पैदा करना नहीं चाहेंगे।

इस तरह भाजपा का संकट नीतीश के लिए मौका बनकर आया है। नीतीश अगर जातीय जनगणना कराते हैं, तो वे फिर से समग्र पिछड़ों के नेता बनने का आधार तैयार कर देंगे।

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