SaatRang : रो रही द्रौपदी, जींस पहनने पर बेटी की हत्या

SaatRang में इस बार पढ़िए संस्कार के नाम पर महिलाओं के प्रति बर्बर हिंसा क्यों? बुद्ध, महावीर, ऋषियों ने जो संस्कार दिए, उसके यह उल्टा संस्कार कौन फैला रहा?

चार वेद, 18 पुराण, बुद्ध, महावीर, हजारों ऋषि-मुनि, सूफी-संतों के संस्कार वाले देश में यह कौन सा संस्कार है कि 17 साल के बेटी ने जींस पहना, तो घरवालों ने ही हत्या कर दी। घटना बिहार से सटे यूपी के देवरिया जिले की है। दो दिन पहले घरवालों ने बेटी की हत्या करके उसे एक पुल से नदी में फेंका, लेकिन शव पुल के नीचे तार में लटक कर रह गया।

इस देश ने पांच महान नारियों में द्रौपदी को भी सम्मान के साथ स्थान दिया है। देवरिया कभी बुद्ध और महावीर भी गए होंगे। दोनों ने अहिंसा का संस्कार दिया, जो जीवनसूत्र बना, फिर यूपी-बिहार के इसी इलाके से दुनियाभर में फैला। महावीर तो इस मामले में चरम पर हैं। वे तो पेड़-पौधे को भी जीव मानते थे और उसके साथ भी हिंसा नहीं, बल्कि मैत्री का संदेश देते हैं।

पुराण और उपनिषदों में विवेक का संस्कार दिया गया है। महावीर ने विवेक को मोक्ष की पहली सीढ़ी बताया है। उन्होंने कहा है-
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइआ

( श्रीआचारांग सूत्रम, प्रथम श्रुतस्कंध सूत्र8)
परिण्णा अर्थात परिज्ञा का अर्थ होता है विवेक। कोई भी कार्य विवेक से किया जाए। विवेक का अर्थ है क्या अच्छा है, क्या बुरा है इसकी समझ।
देवरिया के परिवार ने जींस पहनने पर बेटी की निर्मम हत्या की। यह विवेकहीनता का चरम है। यह संस्कार की रक्षा के नाम पर किया गया। ये कौन-सा संस्कार है?

आपको याद होगा चार महीना पहले उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने संस्कार की दुहाई देते हुए एक महिला को इस बात के लिए फटकारा था कि उसने जींस पहन रखी थी। जींस ठेहुने के पास फटी थी। हम कह नहीं सकते कि देवरिया में बेटी को मारनेवाले तीरथ के संस्कार-उपदेश से कितने प्रभावित हुए। लेकिन यह सच है कि एक नया हिंसक संस्कार फैल रहा है।

पटना पंजाबी बिरादरी के पूर्व अध्यक्ष और सिख धर्म के जानकार सरदार गुरुदयाल सिंह बताते हैं कि श्रीगुरुग्रंथ साहिब ने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर स्थान दिया है।

भंड मुआ भंड आलिये, भंड होवे बंधान। सो क्यों मंदा आखियै जित जंमे राजन। भंड ही भंड उपजै भंडै बाज न कोय। नानक भंडै बाहरा एको सच्चा सोय। (गु.ग्रं.स. अंग 473)

अर्थात बड़े-से-बड़े यहां तक कि राजा को भी स्त्री ही जन्म देती है, फिर वह कमतर कैसे हो सकती है। वही सभी रिश्तों की जननी है।

महिलाओं के प्रति हिंसा करनेवाले ऐसे संस्कार के पुजारी हैं, जो दूसरे धर्म, दूसरे विचार के प्रति घृणा और हिंसा के भाव से भरे हैं। इनके दिमाग का हिंसक संस्कार अपने परिवार को भी इसकी आग में झोंक रहा है। यह अविवेक पर आधारित है। अविवेक इतना गहरा हो गया है कि दो महीना पहले उसे गंगा किनारे रेत में दफनाए शवों का दर्द भी सुनाई नहीं देता। एक अखबार ने लिखा कि गंगा में इस तरह शव दफनाने की हिंदुओं की पुरानी परंपरा रही है।

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सोशल मीडिया पर महिलाओं को गंदी गालियां देनेवाले कौन संस्कारी हैं, अगर स्त्री मुखर है, राजा की आलोचना करने का साहस रखती है, द्रौपदी की तरह स्वाभिमानी है, तब तो ये नए संस्कारी आग-बबूला हो जाते हैं। हमें मेडल लाती बेटी पसंद है, पर स्वतंत्रता, स्वाभिमान की बात करती बेटियों से नफरत है। ये महावीर के विवेक के ठीक विपरीत है। स्त्रियों के प्रति नफरत से भरे इस विचार को नहीं पहचाना, तो हम अपने को महावीर की धरती के वंशज कैसे कह सकते हैं?

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