बंद पड़े हैं थियटर

सोनपुर मेला वीरान है. दुकानदार ग्राहको के इंतजार में परेशान हैं.पर्यटक मेले के फीकेपन से उदास हैं.थियटर वाले लालफीताशाही के अहंकार से त्रस्त हैं. पशुओं की आमद कानूनी अड़चनों से बंद है. तो क्या हम एशिया के इस सबसे बड़े पशु मेले के ताबूत में आखिरी कील ठोकने पर आमादा हैं.

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

क्या सोनपुर का विश्वप्रसिद्ध मेला इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जायेगा? एशिया के सबसे बड़े पशु मेले का वजूद मिट जाने को है?अगर आप इसे मेले में आयें तो आप कह उठेंगे कि हां. पिछले आठ दिनों से मेला लगा है. पर यहां के झूले बच्चों के लिए तरस रहे हैं. थियटर के दरवाजे बंद पड़े हैं. दुकानदार ग्राहकों के लिए तरस रहे हैं. गुड़ की जलेबियां ठंड पड़ रही हैं, कोई खरीददार नहीं है. उधर वर्दीधारी कानून व्यस्था के नाम पर आतंक बन लोगों पर धौंस जमा रहे हैं. प्रशासन थियटर की महिला कलाकारों को हिरासत में ठूस रहा है. सारांश यह कि लालफिताशाही का रौब मेले को बेमौत मार डालने पर उतारू है.

बंद पड़े हैं थियटर

सदियों से बिहार की पहचान और बिहारी संस्कृति के वाहक इस मेले का वर्तमान यही है. चिड़िया बाजार सुनसान है. हाथी बाजार नदारद है. घुड़दौड़ का नामो निशान नहीं है. यूं तो मेले में रंगबिरंगी रौशनी अपनी छटा बिखेर रही है. राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के खूबसूरत पंडाल और पंडाल में सजी सैकड़ों कुर्सियां तो हैं पर उसमें आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखने वाला कोई नहीं है. तो फिर इसका कारण, क्या यह है कि लोगों की मेले में रूचि नहीं रही? इसका एक शब्द में जवाब है ‘नहीं’. लोग-बाग मेले के लिए बेचैन हैं. आना चाहते हैं. देखना चाहते हैं. सैर-सपाटा करना चाहते हैं. तफरीह करना चाहते हैं. पर तफरीह की परम्परागत साधनों पर सरकार ने लगाम लगा रखा है.

विलुप्त होने के कगार पर 

जगमगाती रौशनी से सराबोर आधा दर्जन थियटरों के मालिकान करोड़ों का खर्च झोंक कर प्रशासन से अनुमति की प्रतीक्षा कर रहे हैं. थियटर में देसी और गंवई संगीत की धुनों पर पाबंदी है. नृतकियों की भीड़ अपने साज-सामान ले कर पहुंच चुकी हैं पर उन्हें अपना हुनर दिखाने की इजाजत नहीं है. थियटरों पर ताले पड़े हैं. वन्य जीवों के पीचीदा कानून ने हाथी, घोड़ों और रंग बिरंगी चिड़ियों की चहचहाहट पर बंदिश लगा रखी है. ऐसे में मायूस दर्शक मेले में फटकने का नाम नहीं ले रहे हैं. जब मेले में लोग ही ना हों तो दुकानदारों को ग्राहकों के लाले क्यों न पड़ें? पिछले एक दशक से खादी वस्त्रों की दुकान सजाने वाले राजीव कुमार बताते हैं. पिछले साल नोटबंदी ने मेले को उजाड़ दिया इस बार सरकारी लालफीताशाही और जीएसटी के आतंक ने दुकानदारों को रुला रखा है.

सरकारी पंडाल सजे हैं, पर चहल पहल गायब है

 

सोनपुर मेला हमारी हजारों वर्ष पुरानी संस्कृति का वाहक रहा है. बचपन में पाठ्य पुस्तकों में इसकी कहानिया पढ़ कर जवान  होने वाली नस्लें उस मेले को खोज रही हैं जो कभी किताबों में पढ़ा गया था. लेकिन अब यह मेला इतिहास के पन्नों में गायब होने को मजबूर है.

लालफीताशाही से त्रस्त मेला

ऐसे में सवाल यह है कि यह सब क्यों हो रहा है? राज्य सराकरा बिहार दिवस का आयोजन पिछले अनेक सालों से कर रही है. पटना का गांधी मैदान हर साल मेला में बदल दिया जाता है. पर सोनपुर का मेला वीरानी में बदल रहा है तो इसके पीछ जनता की दिलचस्पी में कमी का आरोप लगाना बेईमानी होगी. सच्चाई यह है कि मेले में कानून व्यवस्था के नाम पर थोथी दलीलें और वन्यजीवों से संबंधित कानूनों की पेचीदगी भारी पड़ रही है. थियटरों में अश्लीलता के आरोपों की फिजूल की दलीलें मेले के वजूद को निस्तनाबूद करने पर अमादा हैं. सैकड़ों सालों से सजने वाले थियटरों के कलाकारों को अपने हुनर दिखाने की इजाजत नहीं देना, कैसा प्रशासनिक फैसला है. राज्य सरकार को अश्लीलता का इतना ही खतरा है तो वह इस पर कड़ी शर्तें लगा सकती थी, इसके तमाम शो को मानिटर कर सकती थी. पर लालफीताशाही के तानाशाह रवैये ने सबकुछ मिट्टी में मिला दिया है. और अगर थियटर के कलाकार इसका विरोध कर रहे हैं तो उन पर अलग अलग आरोप लगा कर उन्हें जेल की सलाखों में डाला जा रहा है.

दुकान पर ग्राहकों के पड़े लाले

 

ऐसे समय में जब हरियाणा का फिसिड्डी सूरजकुंड मेला और राजस्थान का पुष्कर मेला प्रसिद्धि बटोरने में लगे हों, तो सोनपुर मेला अपने वजूद पर मर्सिया गाने को मजबूर है.

 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी विरासत अपनी संस्कृति को बचाने का बार बार ऐलान करते हैं. लेकिन सोनपुर मेला, जो अपने अस्तित्व के लिए तड़प रहा है, उस पर पाबंदियों का इतना बड़ा बोझ क्यों डाल दिया गया है. उन्हें सोचना चाहिए. अगर सरकार इस पर नहीं सोचेगी तो बस समझ लीजिए कि आने वाली नस्लें सरकार के इन हाकिमों को कोसेंगी. और कहेंगी कि उनके पुरखों ने उनकी सांस्कृतिक विरासत को तबाह कर दिया.

By Editor