सुभाषचंद्र बोस सत्ता छीन कर आजादी हासिल करना चाहते थे

सुभाषचंद्र बोस सत्ता छीन कर आजादी हासिल करना चाहते थे। श्रीसीताराम आश्रम ट्रस्ट की गोष्ठी- सुभाष चंद्र बोस का आजादी के आंदोलन में योगदान।

श्री सीताराम आश्रम राघवपुर ( बिहटा)। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127 वीं जयंती के मौके पर श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट की कोर से विमर्श का आयोजन किया गया। विषय था ” सुभाष चंद्र बोस का आजादी के आंदोलन में योगदान “। सबसे पहले स्वामी सहजानंद सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया।

इस मौके पर पटना और बिहटा के कई बुद्धिजीवी, समाजिक कार्यकर्ता आदि इकट्ठा हुए। कार्यक्रम का संचालन गोपाल शर्मा ने किया। स्वामी सहजानंद सरस्वती के अध्येता प्रमुख कैलाश चंद्र झा ने वक्तव्य की शुरुआत में सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्वामी सहजानंद सरस्वती को लिखे ऐसे पत्रों को पढ़कर सुनाया जो अब तक सार्वजनिक नहीं था। इन पत्रों में जयप्रकाश नारायण, सोशलिस्ट पार्टी, कांग्रेस सहित कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन राजनीति पर रौशनी डालती है।

अंग्रेजी पाक्षिक ‘बिहार हेराल्ड ‘ के संपादक बिद्युतपाल ने अपने संबोधन में कहा ” हम सब लोग सुभाष चंद्र बोस का उपयोग नेहरू, गांधी के साथ इस्तेमाल किया करते थे। जिस हरिपुरा कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्ष बनाया गया तब वे कहते हैं किसान संगठन के लोगों अधिवेशन के अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। क्योंकि कांग्रेस में व्यक्ति तो सदस्य बन सकता था लेने संगठन को सदस्यता लेने का अधिकार नहीं था। सुभाष चंद्र बोस ने कहा था की जो लोग बाहर खड़े थे उन सब लोगों को कांग्रेस के अंदर आने का अधिकार है। उसके बाद ये संगठन भीतर आए। जब किसान सभा और कम्युनिस्ट पार्टी संस्था के लोग कांग्रेस के अंदर गए तो जमींदार और नवाब लोग जो बैठे हुए थे उन लोगों को लगा कि हमारा वर्चस्व खत्म हो गया। अगली बार ये सब लोग उनके खिलाफ हो गए। सुभाष चंद्र बोस का सबसे बड़ा महत्व यही है कि वर्गीय संगठनों का महत्व उन्होंने समझाया। सुभाष सेना में विद्रोह पैदा कर जनता का समर्थन लेना चाहते थे। हर बड़े आंदोलन के बाद एक थकावट का भी दौर आता है। नेताजी बहुत बार एनालिस्ट भी थे। अभी पूरी दुनिया में रूस-यूक्रेन युद्ध, फिलीस्तीन पर इजरायल का हमला। सुभाष चंद्र बोस की डायरी से पता चलता है की वे द्वितीय विश्व युद्ध की हर बात की जानकारी रखा करते थे। आजाद हिंद फौज द्वारा किए गए असाधारण योगदान के कारण ही भारत में जन विद्रोह हुआ और हमें आजादी मिली। “

फारवर्ड ब्लाक के नेता अनिल शर्मा ने अपने संबोधन में कहा ” आज स्मप्रदायवादी ताकतें दुष्प्रचार करती हैं कि वे गांधी और नेहरू के विरोधी थे। लेकिन यदि सुभाष चंद्र बोस गांधी और नेहरू के विरोधी होते तो आजादी हिंद फौज के अलग अलग रेजीमेंट का नाम गांधी और नेहरू के नाम पर क्यों रखा जाता। सुभाषणचंद बोस का यही संदेश है कि उसे हराने के लिए तमाम वर्गों को एक साथ इकट्ठा होना होगा। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने कहा नेताओं पर कड़ी नजर रखो। नेताजी भी यही कहा करते थे। “

सामाजिक कार्यकर्ता सूर्यकर जितेंद्र ने अपने संबोधन में कहा ” सुभाष चंद्र बोस ने 1940 में खा था कि धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए। धर्म व्यक्तिगत वस्तु होना चहिए। सर्वोदय शर्मा ने बताया ” 1857 की दूसरी धारा के प्रवक्ता थे सुभाष चंद्र बोस । इतिहास का वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है की राजाओं, नवाबों का इतिहास नहीं होता। इतिहास आम जनता किया करती है। इतिहास शारीरिक और मानसिक श्रम से बनता है। धन्यवाद ज्ञापन ट्रस्ट के सदस्य सुधांशु कुमार ने कहा।
श्रीसीताराम आश्रम ट्रस्ट के बुजुर्ग अध्यक्ष योगेंद्र प्रसाद सिंह, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता कुलभूषण गोपाल, फिल्म अभिनेता रमेश सिंह, लवकुश , आनंद कुमार, दिलीप कुमार, सुजीत कुमार, काजल कुमारी, सोनाली, नरेश, शिवम मिश्रा, निखिल कुमार, सोनाली, बिनेश कुमार सिंह, सुधीर शर्मा, अभिषेक कुमार , सरोज भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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