दिल्‍ली में विधान सभा के चुनाव की घोषणा हो गयी है। 7 फरवरी को चुनाव होगा और 10 फरवरी को चुनाव के नतीजे आ जाएंगे। इस घोषणा से पहले ही आम आदमी पार्टी के पोस्‍टरों से पूरी दिल्‍ली पटी पड़ी है। इन पोस्‍टरों पर केवल अरविंद केजरीवाल के फोटो चिपके हुए हैं। जैसे लोकसभा चुनाव में भाजपा के पोस्‍टरों से पूरी दिल्‍ली पटी पड़ी थी और उन पर केवल मोदी के फोटो चिपके हुए थे। इस चुनाव में मुख्‍य प्रतिद्वंदी पार्टियों में भाजपा और आम आदमी पार्टी को ही माना जा रहा है। पिछले साल चुनाव में कांग्रेस तीन नंबर पर थी। इस साल भी यही उम्‍मीद की जा रही है। वैसे जबसे कांग्रेसी भाजपाई होने लगे हैं। कांग्रेस से उम्‍मीद कम ही है। अत: इतना तो स्‍पष्‍ट है कि मुख्‍य चुनावी मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ही होगा।akaj

अमलेश प्रसाद

 

लेकिन सबसे गंभीर सवाल की क्‍या भाजपा और आम आदमी पार्टी में कुछ अंतर भी है क्‍या? ऊपरी तौर पर कई अंतर दिखाई दे सकते हैं। पर, मानसिक और शारीरिक रूप से भाजपा और आम आदमी पार्टी में ज्‍यादा अंतर नहीं है। दोनों पार्टियों के प्रमुख नेताओं की वैचारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि एक ही है। वैसे भी यह चुनाव विचारधारा नहीं, बल्‍कि व्यक्‍ति के बाजीगरी के स्‍तर पर लड़ी जाएगी। अगर विचारधारा के स्‍तर पर बात की जाए तो दोनों पार्टियों में कुछ खास अंतर नहीं है। चाहे झंडे अलग हों। चाहे चुनाव चिह्न अलग हों। चाहे नारे अलग हों। चाहे चेहरे अलग हों। चाहे व्‍यक्‍ति अलग हों। चाहे पार्टी अलग हों। लेकिन सामाजिक विचारधारा के स्‍तर पर दोनों एकसमान हैं।

 

अब साफ हो गया है कि भाजपा संघ का ही मुखौटा है। अब आम आदमी पार्टी के चेहरे से भी मुखौटा धीरे-धीरे उतरने लगा है। इस लिहाज से आम आदमी पार्टी का शारीरिक और मानसिक विश्‍लेषण अभी जरूरी है। आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से ही शुरूआत करते हैं। अरविंद आरक्षण विरोधी खेमे के पहलवान रहे हैं। यानि वे दलित पिछड़ा विरोधी हैं। पत्रकारिता से राजनीति में आए आशुतोष भी इनके पुराने साथी रहे हैं। आशुतोष अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सक्रिय कार्यकर्त्‍ता रहे हैं। हाल ही में नेहरू प्‍लेस में एक सभा को संबोधित करते समय केजरीवाल ने खुद को ‘बनिया’ करार देते हुए कहा, ‘मैं बनिया हूं और धंधा समझता हूं।’ और इसी सभा में बनियों के लिए घोषणा-पत्र भी जारी किया गया। पिछले साल चुनाव में आम आदमी पार्टी ने हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग घोषणा-पत्र जारी किया था। इस बार लगता है कि हर जाति के लिए अलग-अलग घोषण-पत्र जारी किया जाएगा। केजरीवाल के स्‍वजातीय बनियों के लिए जारी कर दी गयी है। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली में करीब 20 लाख व्यापारी हैं, जो राजनीतिक समीकरण के लिहाज़ से अहम है, इसलिए आम आदमी पार्टी की इन पर खासी नज़र है।

 

यह उनकी जातिवादी सोच का ही परिचायक है। इस तरह की जातिवादी चिंतन-मंथन करनेवालों की भाजपा के पास बड़ी फौज है। आम आदमी पार्टी भी इसी लाइन पर आगे बढ़ते हुए नजर आ रही है। दूसरा उदाहरण मनीष सिसोदिया का है। मनीष सिसोदिया के पटपड़गंज ऑफिस से महज पांच मिनट की दूरी पर मदर डेयरी के मेन गेट पर कुछ महीने पहले एक बड़ा-सा पोस्‍टर लगा हुआ था, जो किसी क्षत्रिय संगठन का था। इस पोस्‍टर में मनीष सिसोदिया ही प्रमुख रूप से छपे हुए थे। उधर बनिया अरविंद केजरीवाल बनियों की घेरेबंदी में लगे हुए हैं, जो भाजपा के समर्थक माने जाते हैं। तो इधर राजपूत मनीष सिसोदिया राजपूतों को एकजूट करने में लगे हुए हैं। यह भी गौर करनेवाली बात है कि जातिवाद की राह चलनेवाली इस आम आदमी पार्टी के मुख्‍य थींक टैंक केजरीवाल और सिसोदिया ही हैं। योगेन्‍द्र यादव की हैसियत तो एक कर्मठ और ईमानदार कायर्कर्त्‍ता से ज्‍यादा कुछ नहीं है। आम आदमी पार्टी के इस जातिवाद की बुनियाद कुमार विश्‍वास ने राय बरैली में एक सभा में यह कहते की थी कि मैं ब्राहमण का बेटा हूं। आम आदमी पार्टी के गलियारे से जातिवाद के काले धुंए उठने लगे हैं। कहीं आम आदमी पार्टी की कोठी से धर्म की धधकती लपटें भी न निकलने लगें। आम आदमी पार्टी के निर्माण का उद्देश्‍य मीलों पीछे छूट गया है। अन्‍ना हजारे का सपना लूट गया है। अब जाति के बलबूते केवल सत्‍ता पर नजरें हैं।

(अमलेश प्रसाद फॉरवर्ड प्रेस से जुड़े पत्रकार हैं)

By Editor

Comments are closed.