बिहार में मोहनिया के एसडीएम जितेंद्र गुप्ता द्वारा रिश्वत लेने न लेने का फैसला अदालत करेगी पर इस मामले में आईएएस बनाम आईपीएस टकराव से बवंडर मचा है. इस बवंडर के पीछे का सच क्या है ?curroption

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

मोहनिया के एसडीएम व आईएएस जितेंद्र गुप्ता को कथित तौर पर निगरानी विभाग ने 80 हजार रुपये घूस लेते गिरफ्तार किया और उन्हें जेल में डाल दिया गया. जमानत भी नहीं मिली और अब मामले की सुनवाई निगरानी की अदालत में हो रही है.

बात इतनी सी है कि एक नौकरशाह ने रिश्वत लिया या नहीं. लेकिन इस मामले में आईएएस लॉबी खुल कर सामने आ गयी है. बिहार का आईएएस एसोसिएशन औपचारिक रूप से इस गिरफ्तारी को गैरकानूनी घोषित कर रहा है. इसके लिए वह बाजाब्ता अब मुख्यसचिव व मुख्यमंत्री तक से मिल कर शिकायत करने वाला है. एसोसिएशन का कहना है कि यह गिरफ्तारी पक्षाप्तपूर्ण है. उधर एसडीएम जितेंद्र गुप्ता ने कैमूर की एसपी हरप्रीत कौर पर आरोप लगाया है कि उन्होंने इस मामले में साजिश करके फंसाया है. दूसरी तरफ आईपीएस लाबी औपचारिक रूप से इस मामले में तो सामने नहीं आई है लेकिन तमाम पुलिस अफसरों की जमात जितेंद्र गुप्ता को किसी तरह की राहत देने के खिलाफ है. अब इससे साफ हो चुका है कि रिश्वतखोरी का मामला अपनी जगह है, लेकिन इस मामले में लड़ाई की दिशा आईएएस बनाम आईपीएस की तरफ मुड़ गयी है.

दुनिया जानती है कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री ब्यूरोक्रेसी की कोख से ही निकलती है. इसमें आईएएस और आईपीएस दोनों अफसरान शामिल हैं. वैसे न तो तमाम आईएएस भ्रष्ट हैं और न ही आईपीएस अफसर पर एक आम आदमी इन दोनों तरह के बाबुओं की चपेट का शिकार है. समान बैच काआईएस अफसर पद और अधिकार के मामले में आईपीएस अफसरों से ज्यादा शक्तिशाली होता है. उसके ऊपर अपनी शक्ति का भूत सवार होता है. ऐसे में दोनों तरह के नौकरशाहों के बीच आम तौर पर शीतयुद्ध की स्थिति बनी रहती है. आईएएस जितेंद्र गुप्ता मामले में यह शीत युद्ध, युद्ध जैसी स्थिति में बदलती जा रही है.

क्या कहते हैं आईएएस-आईपीएस अफसर-
इस मामले में नौकरशाही डॉट कॉम को एक रिटायर्ड आईएएस अफसर ने दो टूक कहा कि आईएएस जितेंद्र गुप्ता को फंसाया जा रहा है. उन आईएएस अफसर ने यह किस आधार पर कहा और इस आरोप को मढ़ने के पीछे उनके पास क्या तथ्य है, उन्होंने कुछ नहीं बताया. वहीं एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने आईएएस लॉबी पर हमला बोलते हुए कहा कि वे लोग खुद को दूसरी दुनिया का आदमी समझते हैं. उनके ऊपर सुपरमेसी का भूत सवार होता है और वे सोचते हैं कि वे कानून से ऊपर हैं.
जितेंद्र गुप्ता मामले में कुछ सवाल
यह तो तय है कि एसडीएम जितेंद्र गुप्ता रिश्वतखोरी मामले में न्यायालय ही अंतिम रूप से फैसला करेगा. पर यहां कुछ सवालों पर गौर करने की जरूरत है.
1. जितेंद्र गुप्ता और जिले की एसपी के बीच टकराव की स्थिति पहले से रही है. इसका सुबूत यह है कि खुद जितेंद्र गुप्ता ने कैमूर की एसपी हरप्रीत कौर को पत्र लिख कर कहा था कि नेशनल हाईवे पर ट्रकों की जांच का अधिकार उनके पास नहीं है. याद रहे कि जितेंद्र गुप्ता पर ट्रकों की जांच के मामले में ही रिश्वत लेने का आरोप है. बात साफ है कि ट्रकों की आवाजाही पर पुलिस द्वारा कागजात जांचने से वसूती तो निश्चित तौर पर की जाती है. अब इसमें किसकी क्या भूमिका है यह सवाल महत्वपूर्ऩ है.
2. निगरानी विभाग आईपीएस अफसरों की टीम के अधीन काम करता है. जो आईएएस निगरानी पर आरोप लगा रहे हैं कि जितेंद्र को फंसाया गया है, उनका इशारा आईपीएस अफसरों की तरफ है. एसपी हरप्रीत कौर का कहना है कि निगरानी अपना काम करेगी, उन्हें इस पर कुछ नहीं कहना. इस मामले में दूसरा सवाल यह है कि जिन ट्रकों को पकड़ा गया उसके मालिकान दूसरे राज्य के हैं. ट्रक मालिक ऐसे मामलों में फंस कर अपना कारोबार चौपट होने देना नहीं चाहते. तो फिर उन लोगों ने इस मामले में निगरानी की मदद ले कर झमेले में फंसना क्यों चाहा ? क्या इसके पीछे कोई सशक्त ताकत तो नहीं है जो जितेंद्र गुप्ता के वर्चस्ववादी सोच को सबक सिखाना चाहती है? इस सवाल का कत्तई यह मतलब नहीं कि हम जितेंद्र पर रिश्वत के आरोपों को झूठा कहना चाहते हैं, इसका मतलब यह है कि उगाही का अधिकार किसे है- आईएस अफसर को या आईपीएस अफसर को.

चूंकि अब यह मामला काफी तूल पकड़ चुका है. अब इस पर न्यायालय को जो करना है वह करेगा. पर इस पूरे मामले में यह साफ हो गया है कि जितेंद्र के बहाने आईएएस बनाम आईपीएस के वर्चस्व का टकराव खुल कर सामने आ गया है.

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