बिहार में जातियों की पार्टी है। यादव-मुसलमान की पार्टी राजद। बी–थ्री यानी ब्राह्मण, बनिया और भूमिहार की पार्टी है भाजपा। कुशवाहा की पार्टी है रालोसपा। पासवान की पार्टी है लोजपा। उसी तरह कुर्मी की पार्टी है जदयू। राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार से लेकर राज्य मुख्यालय के प्रभारी संजय कुमार तक सभी कुर्मी। लोकसभा, राज्यसभा, विधान सभा, विधान परिषद में नेता सब के सब कुर्मी। नीतीश कुमार पार्टी पर पैबंद लगाने के लिए पार्टी का भविष्य तलाश कर ले आये, उनका नाम है प्रशांत‍ किशोर पांडेय। बक्सर के बाबा जी हैं। लेकिन बाबाजी की महिमा देखिये कि पैबंद बनकर आये थे और अब आवरण बन गये। बढ़का-बढ़का कुर्मी पार्टी व संगठन में अपना चेहरा तलाश रहे हैं।

पांडेय जी ‘पूर्व मुख्यमंत्री’ नीतीश कुमार के सरकारी आवास सात सर्कुलर रोड में रहते हैं। अपनी बैठकी और दरबार वहीं लगाते हैं। पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं को लोकतंत्र का पाठ सात नंबर में ही पढ़ाया जा रहा है। पार्टी में ऊर्जा भरने का मंत्र पढ़ाया जा रहा है। पार्टी वर्कर को ‘मजदूर’ और मजदूर को ‘पार्टी वर्कर’ बनाने का अभियान चल रहा है। पार्टी कार्यकर्ता के रूप में सात नंबर पहुंचने वाले अधिकतर वही लोग हैं, जो प्रशांत किशोर के पिछले कार्यकाल में जदयू के लिए दैनिक मजदूर के रूप में उनके प्रचार कंपेन में काम कर चुके थे। चौक-चौराहे पर लगे प्रचार स्टॉल से लेकर कॉल सेंटर तक में काम करने वाले ‘पांडेय जी’ के नये कार्यकाल में ‘जदयू वर्कर’ बन गये हैं।

पार्टी के नाम पर झोला-झंडा ढोने वाले कार्यकर्ता भी मस्त हैं। उन्हें लगता है कि पार्टी के ‘अच्छे दिन’ आने वाले हैं। गैर-यादव पिछड़ा की गोलबंदी से सत्ता शीर्ष पर पहुंचे नीतीश कुमार अब ‘पांडेय जी’ को पार्टी का भविष्य बता रहे हैं। यानी जदयू में पिछड़ा व अतिपिछड़ावा के दिन लद गये हैं। पांडेय जी पार्टी चलाएंगे और आरसीपी सिंह जैसे लोग ‘बाबाजी का पतरा’ ढोएंगे। बाकी नेता व कार्यकर्ता ‘नीतीश-कीर्तन’ का आनंद उठाएंगे।

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