सुप्रीम कोर्ट ने जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण कोटे में शामिल करने के लिए पिछली यूपीए सरकार की ओर से जारी अधिसूचना को आज रद्द कर दिया।SC-1

 

सर्वोच्च न्‍यायालय ने कहा कि जाति एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन आरक्षण के लिए यही एक आधार नहीं हो सकता है। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक आधार भी जरूरी है। इसके साथ ही अब केंद्रीय नौकरियों और केंद्रीय शाक्षिक संस्थानों में जाटों को आरक्षण नहीं मिलेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का नौ राज्यों में जारी जाट आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जस्टिस तरुण गोगोई और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने कहा कि हम केंद्र की ओबीसी की लिस्ट में जाटों को शामिल करने की अधिसूचना निरस्त करते हैं। बेंच ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उस निष्कर्ष की अनदेखी करने के केंद्र के फैसले में खामी पाई, जिसमें कहा गया था कि जाट केंद्र की ओबीसी लिस्ट में शामिल होने के हकदार नहीं हैं, क्योंकि वे सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग नहीं हैं। इसने ओबीसी आरक्षण पर मंडल कमिशन की सिफारिशों के कार्यान्वयन पर वृहद बेंच के निर्णय का हवाला दिया।  बेंच ने यह भी कहा कि हालांकि भारत सरकार को संवैधानिक योजना के तहत किसी खास वर्ग को आरक्षण उपलब्ध कराने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन उसे जाति के पिछड़ेपन के बारे में दशकों पुराने निष्कर्ष के आधार पर ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

यह फैसला ओबीसी रिजर्वेशन रक्षा समिति की जनहित याचिका पर आया है। इस समिति में केंद्र की ओबीसी लिस्ट में शामिल समुदायों के सदस्य शामिल हैं। याचिका में आरोप लगाया गया था कि पिछले साल 4 मार्च की अधिूसचना तत्कालीन केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले जारी की थी, ताकि तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी को वोट जुटाने में मदद मिल सके। शीर्ष अदालत ने एक अप्रैल को केंद्र से पूछा था कि उसने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीएसी) की सलाह की कथित अनदेखी क्यों की।

By Editor

Comments are closed.