उच्चतम न्यायालय ने चुनावी हलफनामे में तथ्य छुपाने को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अयोग्य ठहराये जाने संबंधी याचिका पर आज चुनाव आयोग से जवाब तलब किया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पेशे से वकील मनोहर लाल शर्मा की याचिका की सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके पूछा कि आखिर क्यों न श्री कुमार की विधान परिषद की सदस्यता समाप्त कर दी जाये।

 

न्यायालय ने जवाब के लिए चार हफ्ते का समय दिया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि श्री कुमार ने अपने चुनावी दस्तावेजों में उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज होने की जानकारी नहीं दी। याचिका में श्री शर्मा ने मांग की है कि मुख्यमंत्री को विधान पार्षद पद से अयोग्य घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि उन्होंने 2004 और 2012 में चुनावी दस्तावेज जमा कराते समय आपराधिक जानकारी छुपाई। याचिका में आगे दावा किया गया कि नीतीश ने अपने कार्यकाल की संवैधानिक ताकत के चलते 1991 के बाद से ही गैर-जमानती अपराध में जमानत तक नहीं ली और साथ ही 17 साल बाद मामले में पुलिस से क्लोजर रिपोर्ट भी फाइल करवा ली।

 

 

श्री कुमार के खिलाफ जांच का आदेश देने की मांग भी याचिका में की गई है। वकील ने याचिका के जरिये न्यायालय से अपील की है कि वह इस तरह का आदेश जारी करे कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी या आपराधिक मामला दर्ज है तो वह किसी भी संवैधानिक पद पर न बैठ पाये।

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