प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को समय के अनुसार नया कलेवर देने का आह्वान करते हुए कहा है कि भाग दौड़ की आधुनिक जीवनशैली में आयुर्वेद दवाओं को पुड़िया में बेचने से काम नहीं चलेगा, इन्हें अच्छी पैकेजिंग के साथ लाना पड़ेगा।


प्रधानमंत्री ने नई दिल्‍ली में देश के पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान का लोकापर्ण करने के अवसर पर कहा कि आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जो प्रकृति से जुड़ी है और इसमें दुष्प्रभावों की आशंका नहीं होती। आने वाले समय में दुनिया के स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति की अगुवाई आयुर्वेद ही करेगा लेकिन इसके लिए इस चिकित्सा पद्धति को समय के अनुसार व्यवहारिक और अनुकूल बनाना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि एक तरफ एलौपैथिक दवाइयां हैं, जिन्हें खट से खोला और खा लिया। वहीं दूसरी तरफ आयुर्वेद दवाएं है, जिन्हें बनाने और खाने की प्रक्रिया इतनी लंबी है कि सामान्य व्यक्ति यह सोचने लगता है कि कौन इतना समय खराब करे। इसलिए ये दवाएं मात खा जाती हैं। फास्ट फूड के इस दौर में आयुर्वेदिक दवाइयों की पुरानी शैली की पैकेजिंग से काम नहीं चलेगा। जैसे-जैसे आयुर्वेदिक दवाइयों की पैकेजिंग आधुनिक होती जाएगी, इलाज की प्रक्रियाओं का मानक तय होगा,तथा इसकी शब्दावली भी सर्वग्राह्य हो जाएगी ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की शब्दावली को सबकी समझ के दायरे में लाने के लिए इसकी एक मानक शब्दावली और निर्देशिका पोर्टल जारी किया गया है। इन दोनों ही पहलों से बड़ी मात्रा में आकंडे इकठ्ठे होंगे जिनका इस्तेमाल आयुर्वेद को आधुनिक तौर-तरीके के अनुरूप वैज्ञानिक मान्यता दिलाने में किया जा सकेगा। ये पहल आयुष विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। इसकी मदद से आयुर्वेद की वैश्विक स्वीकार्यता भी बढ़ेगी।

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