भूपेंद्र नारायण मंडल समाजवादी राजनीति के सम्मानित नेता रहे हैं. वह अपने सहयोगियों को राजनीति में शुचिता के लिए, इसमें शामिल होने की सलाह देते. पढ़िए गजेंद्र प्रसाद हिमांशु का आलेख

 फोटो madhepurajilablogspot से साभार
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भूपेंद्र नारायण मंडल संसदीय लोकतंत्र के पक्के हिमायती थे. स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आत्मानुशासन अत्यंत आवश्यक है; इस विषय पर वे आम लोगों एवं पार्टी कार्यकर्ताओं को बराबर जागरूक किया करते थे. लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक की भागीदारी वे आवश्यक मानते थे .

मेँ 1967 में पहली बार सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर एम् एल ए चुना गया था. उस समय राजनीति का पतन इतना अधिक नहीँ हुआ था उस समय की राजनीति में मूल्य और मर्यादा कायाम थी. फिर राजनीति की कुछ परेशानियो के चलते मैंने भूपेंद्र बाबू को; जो हम लोगोँ के वरिष्ठ नेता थे, को अपनी परेशानी बताते हुए  उनके सामने विधायक पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी तो भूपेंद्र नारायण मंडल ने मुझसे कहा: क्या कीजिएगा ? प्रोफ़ेसरी  कीजिएगा? वहां  भी पोलिटिक्स है .एक प्रोफ़ेसर दूसरे प्रफेसर को देखना नहीं चाहता और पैर खींचते हैं. ठाकुरबारी जेसे पवित्र धार्मिक स्थल मेँ भी एक महंत दूसरे महंत की हत्या करवा देता है;  और यहाँ तक कि वोटोँ की राजनीति मेँ दो किलो चीनी के लिए भी आपको मुखिया के पास जाना होगा. (उस समय चीनी के लिए परमिट का सिस्टम लगा था) लोकतांत्रिक व्यवस्था मेँ बिना राजनीति मेँ हिस्सा लिए जीने के लिए कोई उपाय नहीँ है.

 

जीवन दर्शन

भूपेंद्र नारायण मंडल का जन्म मधेपुरा जिले के रानी पट्टी गाँव के एक जमींदार परिवार मेँ 01 फरवरी १९०४ को  हुआ था.

उनहोने भागलपुर के टी एन जे  कॉलेज (जिसका नाम बाद में बदलकर टी एन बी कॉलेज, भागलपुर हो गया) से स्नातक  और पटना विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की थी. वे विद्यार्थी जीवन में ही गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुडे हुए थे.  १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन मेँ मधेपुरा कचहरी पर इन्होंने यूनियन जैक उतार कर भारत का झंडा फहारा दिया था; जबकी झंडा फहराने के अपराध मेँ उन दिनों सूट वारंट था. फिर भी देश की आजादी के लिए अपने जान की परवाह उनहोंने नहीँ की.

आजादी के पश्चात जब देश मेँ संसदीय लोकतंत्र कायम हुआ तो उसमेँ भूपेंद्र नारायण मंडल लोकसभा एवं राज्य सभा के सदस्य चुने गए. 1957 मेँ सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रुप मेँ बिहार विधान सभा के सदस्य चुने गए. बिहार विधानसभा मेँ भी इन्होंने शोषितों एवम दलितों की समस्याओं को लेकर काफी प्रमुखता से बहुत सारे सवाल उठाए थे और उस समय की सरकार को झकझोर कर रख दिया था.

 

 

इसलिए भूपेंद्र बाबू का कहना था “लोकतंत्र मेँ राजनीति अनिवार्य है. “पॉलिटिक्स इज मस्ट”. भूपेंद्र बाबू इस प्रकार लोगोँ को राजनीतिक रुप से जाग्रत होने ओर भाग लेने के लिए आम लोगोँ को अपने प्रशिक्षण शिविर मेँ अधिक जोर दिया करते थे. डॉ राम मनोहर लोहिया ने जब अलग सोशलिस्ट पार्टी का निर्माण 1954 मेँ किया था तो उस पार्टी निर्माण मेँ भूपेंद्र बाबू की बहुत ही अहम भूमिका थी. उस समय पार्टी मेँ उनके सिद्धांत और विचारोँ का बहुत क़द्र था.

 हैदराबाद सम्मेलन

एक बार पार्टी का सम्मेलन हैदराबाद मेँ था जिसमे कुछ नेता चाहते थे कि पार्टी के जो क्षेत्रीय और जिला कार्यालय  हुआ करते हैं; उनहे बंद कर केवल प्रांत और केंद्र मेँ ही पार्टी कार्यालय चले. डॉ. लोहिया भी इस इस प्रस्ताव के समर्थक हो गए थे मगर भूपेंद्र बाबू ने अपनी राय मेँ कहा क्षेत्रीय और जिला कार्यालय; पार्टी पार्टी हित मेँ रहना आवश्यक है ; जिसे बाद मेँ लोहिया जी ने भी स्वीकृती दे दी . तो एसे महान विचारक और चिंतक थे श्री मंडल.

डॉ. राम मनोहर लोहिया किसी के नाम और संबोधन में “बाबू” नहीं लगाते थे पर भूपेन्द्र नारायाण मंडल जी के प्रति अपने स्नेह और प्यार के कारण ही डॉ. लोहिया भी उनके नाम में बाबू लगाकर उन्हें “भूपेन्द्र बाबू” पुकारते थे .

गरीब दुकानदार के यहां दही-चूड़ा

भूपेंद्र नारायण मंडल केवल सैधान्तिक रुप से गरीबो ओर बेरोजगारोँ के हक़ की लडाई नहीँ लड़ते थे बल्कि अपने जीवन की कार्यशैली मेँ भी इसका बखूबी पालन करते थे . एक बार मैं भूपेन्द्र बाबू के साथ पटना से मधेपुरा आया. स्टेशन पर उतरने के बाद स्टेशन के एक साधारण गरीब चाय दुकानदार की दुकान मेँ मुझे वे ले गए; जहाँ उन्होंने मुझे चूडा दही नाश्ता करवाया. नाश्ते के बाद उनहोने मुझे उपदेश और सीख के रुप मेँ बताया कि देखिए गरीबोँ की दुकान मेँ खाने पीने या कोई चीज खरीदने से; गरीबों की रोजी रोटी चलती है और उन्हें रोजगार मिलता है. उनके परिवार का पालन पोषण होता है.

भूपेंद्र नारायण मंडल सोशलिस्ट पार्टी को मजबूत आधार देने के लिए बराबर लगे रहे. वे देश ओर प्रांतो मे भी दौड़ा करते थे. पुराने सहरसा जिला पूर्णिया और उत्तर बिहार मेँ तो उनके अनेक बड़े और प्रतिभाशाली नेता सोशलिस्ट पार्टी मेँ हुए जो भूपेंद्र बाबू को अपना आदर्श नेता के रुप मेँ देखते थे. पार्टी संगठन के लिए वे एम् पी और एम् एल ए  रहते हुए भी बैल गाडी ओर पैदल यात्रा करते थे. गाँव में, गलियोँ मेँ; खेतोँ मेँ’ खलिहानोँ मेँ यूँ ही लोगोँ से रुबरु होते रहा करते थे भूपेंद्र बाबू. यही कारण था कि गरीब से गरीब कार्यकर्ता भी भूपेंद्र बाबू के नाम के  दीवाने थे. सहरसा जिला का एक कार्यकर्ता जिसका नाम फहीम था, भूपेन्द्र बाबू  के नाम पर घर छोडकर पार्टी कार्यालय मेँ ही रह कर सारा काम करता था.

 लोकतंत्र और शिक्षा

भूपेंद्र बाबू शिक्षा को लोकतंत्र की सफलता के लिए बहुत बड़ा साधन मानते थे. उनका कहना था कि समाज बिना शिक्षा के जिंदा नहीँ रह सकता है. आज उनके नाम पर मधेपुरा विश्वविद्यालय है मगर पूरे प्रदेश में शिक्षा की क्या दुर्दशा हुई है; यह किसी से छुपा नहीँ है. आज तो चुनाव जीतने के लिए केवल भावना को उभारा जाता है. शिक्षा के दीपक को तो मानो बुझा ही दिया गया है. भूपेन्द्र बाबू के मन में शिक्षा के प्रति जो स्पष्ट सोच और नीति थी; वे यदि आज होते तो शिक्षा की इतनी दुर्गति नहीँ होती.

भूपेंद्र नारायण मंडल डॉ लोहिया और महात्मा गांधी के विचारोँ से लैस थे. गांधीजी स्वराज के माध्यम से जनता को सता का नियमन तथा नियंत्रण करने की अपनी क्षमता का विकास करने की शिक्षा देते थे. इसी क्षमता के विकास से स्वराज का असली हित सधेगा .स्वराज का अर्थ ही है सरकार के नियंत्रण से मुक्त होने का सतत प्रयास.

 

भूपेन्द्र बाबू गांधीजी के विचारोँ को लेकर, जनजागरण फैलाकर, जन तंत्र को मजबूत करना चाहते थे; इसलिए भूपेंद्र बाबू का जीवन दर्शन गांधी जी के दर्शन के आधार पर सादा जीवन और उच्च विचार था. डॉ राम मनोहर लोहिया के विचार और चिंतन से भी भूपेन्द्र बाबू बहुत अधिक प्रभावित थे.

राजनीति के वर्तमान नैतिकता एवम सिद्धांतहीनता के दौड़ में भूपेंद्र बाबू का जीवन दर्शन हमारी वर्तमान राजनीति ओर नई पीढी के लिए औषधि का कार्य करेगा.

 

गजेंद्र प्रसाद हिमांशु उपाध्यक्ष, बिहार विधान सभा व   मंत्री, बिहार सरकार रहे हैं.

By Editor