उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार और यौन-उत्पीड़न से जुड़े कानूनी प्रावधानों को लैंगिक रूप से निष्पक्ष बनाने संबंधी एक जनहित याचिका आज खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पेशे से वकील ऋषि मल्होत्रा की याचिका को ‘काल्पनिक’ करार देते हुए खारिज कर दिया। 

न्यायमूर्ति मिश्रा ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि  ये कानूनी प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए हैं तथा उनके पक्ष में हैं। हमें आपकी याचिका काल्पनिक लगती है।  इससे पहले श्री मल्होत्रा ने दलील दी थी कि इन अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता में जो प्रावधान किये गये हैं, उनमें ‘कोई आदमी’ (एनी मैन) का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन अपराध किसी लिंग-विशेष से बंधा नहीं होता है। पुरुषों की तरह महिलाएं भी अपराध करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कानून को अपराधी-अपराधी के बीच विभेद नहीं करना चाहिए। औरत या पुरुष, जो कोई अपराध करेगा, उसके लिए संबंधित कानून में एक ही सजा होनी चाहिए।

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