बिहार में राजनीति का नया रंग क्या होगा और किस गठबंधन का पलड़ा भारी होगा, यह सब आगामी विधानसभा उप-चुनाव में स्‍पष्‍ट हो जाएगा।  उपचुनाव 21 अगस्त को कराया जा रहा है।  lalu nitish 2

 

दिवाकर कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

 

लोकसभा और राज्यसभा उपचुनाव के बाद यह पहला मौका होगा, जब सभी पार्टियां विधानसभा की 10 सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव के जरिये अपनी तैयारियों, जमीनी ताकत और जनाधार का आकलन भी कर सकेंगी। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद नीतीश कुमार की पार्टी सत्तारुढ़ जनता दल यूनाईटेड के लिए यह पहली अग्नि परीक्षा होगी, जो नीतीश कुमार का भविष्य भी तय कर सकती है। यही हाल लालू प्रसाद के लिए भी होगा, जो अपने खोये जनाधार को पाने के लिए जदयू के साथ मिलकर एक बार फिर बिहार की सत्ता में लौटने का ख्वाब देख रहे हैं।

 

लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की पार्टी को जिस तरह की करारी हार का मुंह देखना पड़ा था, उसने दो पुराने मित्र, जो बाद में एक-दूसरे के धुर विरोधी हो गए, उन्हें फिर से मिलने को मजबूर कर दिया। नीतीश कुमार जिस लालू के 15 साल के शासन को जंगलराज की बात कहकर बिहार की सत्ता पर काबिज हुए थे, उसी लालू के साथ फिर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के बाद जनता इन दोनों को किस रुप में स्वीकार करेगी, यह भी पूरी तरह साफ हो जाएगा।

 

अगर नीतीश और लालू की पार्टी मिलकर विधानसभा उप चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब होती है तो फिर बिहार के 2015 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इन दोनों दलों का व्यापक गठबंधन होना साफ हो जाएगा। पर सवाल इस बात का हमेशा उठता रहेगा कि बड़े भाई लालू प्रसाद और छोटे भाई नीतीश कुमार में अब बड़ा कौन होगा। इस विषय पर गठबंधन की गांठ तभी बरकरार रह सकती है, जब ये दोनों नेता किसी तीसरे फार्मूले पर राजी हों और बिहार की राजनीति में जीतन राम मांझी की तरह किसी और चेहरे का पदार्पण हो जाए।

 

इस उप चुनाव से यह भी साफ होगा कि बिहार में एनडीए गठबंधन जो भाजपा, रामविलास पासवान के लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा के रालोसपा से मिलकर बना है, उसकी राज्य में क्या स्थिति है। लोकसभा चुनाव में तो मोदी लहर ने बिहार में एनडीए को 40 में से 31 सीटें दिला दी थी। इसमें से भाजपा को 22, लोजपा को 6 और रालोसपा को 3 सीटें मिली थी। उसी तरह नीतीश कुमार जिन्होंने लेफ्ट के साथ गठबंधन कर 40 में से 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, उन्हें महज 2 सीटों पर सफलता मिली, जबकि लालू प्रसाद कांग्रेस के साथ मैदान में थे और उन्हें चार सीटें मिली थी। अब लालू प्रसाद और नीतीश कुमार 20 साल बाद फिर से एक साथ आ रहे हैं।

 

दोनों की अपनी अपनी राजनीति रही है। लालू नीतीश के विरोध में पिछले 20 साल से अपने जुमले गढ़ते रहे हैं तो नीतीश भी अपने अंदाज में लालू पर लगातार वार करते रहे हैं। पर अब ये दोनों एक-दूसरे के समर्थन में कसीदे गढ़ेंगे। यह बिहार की राजनीति में फिर से नया होगा और जनता का इन कसीदों के बाद क्या जनादेश होगा, यह देखना तो हम सबों के लिए दिलचस्प होगा ही। साथ ही साथ एनडीए गठबंधन और मोदी हवा का बिहार में कितना असर है,  यह भी साफ हो जाएगा।

 

By Editor