जमाना जानता है । पीएम, सीएम व डीएम से अधिक मोल और किसी का नहीं। आप इनमें कुछ भी हों, जमाना पहले दिन से सर आंखों पर बिठा लेता है । कई तरीके के झंझटों से तुरंत मुक्ति मिलती है । एलिट क्‍लास में गिनती शुरु हो जाती है । ड्यूटी में डर्टी बच्‍चों की देखभाल भले शामिल हो, पर्सनल लाइफ में नो इंट्री का बोर्ड लगा होता है । वैसे भी चांदी चम्‍मच के साथ धरती पर आने वाले बच्‍चे को आज कौन स्‍लम व असहाय बच्‍चों के साथ घुलाना-मिलाना चाहता है । पर, आज हम चर्चा करेंगे बिहार के किशनगंज जिले के जिलाधिकारी पंकज दीक्षित का, जो अपने साल भर के बच्‍चे का पहला बर्थ डे सेलीब्रेट करने समाज की गंदी नजरों के इन्‍हीं ‘डर्टी बच्‍चों’ के पास गए और खुशियां बांटीं । दीक्षित को इन बच्‍चों में प्रतिभा का कोहिनूर दिखता है और गुजरे दिन भी याद आते हैं ।dm pahal

 ज्ञानेश्‍वर, वरिष्‍ठ पत्रकार

 

पंकज दीक्षित 2011 बैच के आईएएस अधिकारी हैं । रायबरेली (उप्र) के रहने वाले हैं । मंगलवार 5 दिसंबर को उनके साल भर के बेटे आदर्श का पहला बर्थ डे था । दीक्षित से मेरी कोई पहचान नहीं है । आज सुबह फेसबुक के न्‍यूज फीड में किशनगंज के पत्रकार अंशु कुमार का स्‍टेटस देखा-पढ़ा था । जानकारी मिली कि कलक्‍टर अपने बच्‍चे का बर्थ डे सेलीब्रेट करने गरीब-असहाय बच्‍चों के बीच गए । मुझे अच्‍छा लगा । अंशु से कलक्‍टर का नंबर जाना और बधाई दी । बधाई के हकदार पंकज दीक्षित इसलिए हैं कि हैसियत के हिसाब से बेटे के पहले बर्थ डे का जलसा बहुत भव्‍य कर सकते थे । सभी आते । कमिश्‍नर-एस पी और शहर के सभी बड़े मानिंद,जिन्‍हें न्‍योता मिला होता । ढ़ेर सारे गिफ्ट अच्‍छे-महंगे गिफ्ट मिलते व देर रात तक हाई पार्टी भी चलती । लेकिन,ऐसा कुछ भी नहीं किया कलक्‍टर दीक्षित ने ।

 

स्‍कूल शिक्षक के हैं पुत्र

बधाई की बातचीत के बीच हमने पार्टी क्‍यों नहीं, का सवाल पूछ ही लिया कलक्‍टर दीक्षित से । जवाब में कहा कि हमें गुजरे दिन याद हैं । पिताजी भगवती प्रसाद दीक्षित इंटर स्‍कूल के शिक्षक रहे हैं । समझ सकते हैं, कोई भारी-भरकम फैमिली नहीं है । गरीबी देखी है और गरीबों का दर्द जाना है । बकौल दीक्षित उस दर्द को हम भूलना नहीं चाहते । दर्द कुछ भी कम कर सका, तो खुशी मिलेगी । दीक्षित की पत्‍नी सुष्मिता हाउसवाइफ हैं । मैंने कहा कि गरीब और गंदे बच्‍चों के बीच जाने के लिए क्‍या वे तैयार थीं, उन्‍होंने कहा- आगे बढ़कर जल्‍द चलने को राजी हुईं । मैंने सवाल इसलिए पूछा था कि आजकल के बच्‍चों को तो वर्षों तक तरह-तरह के टीके लग रहे होते हैं और डाक्‍टर की नसीहत गंदा-गंदगी/साफ-सफाई और इंफेक्‍शन के बारे में पता नहीं क्‍या-क्‍या होते हैं । ऐसे में, समाज का एलिट क्‍लास तो बच्‍चे को कोई और छू न ले,यहां तक बचता है । पर,यहां श्रीमती कलक्‍टर की सोच भी समाज को जगाने वाली थी । सो,सलामी तो बनती है ।

 

अपनापन को बोध

दीक्षित बताते हैं कि उन्‍होंने प्‍लान पहले कर रखा था । जानकारी मिली थी कि कलक्‍टर कोठी के पास ही कोई सामाजिक संस्‍थान गरीब व असहाय बच्‍चों के भले के लिए अर्से से काम कर रही है । पहले कभी नहीं गया था । शाम को बेटे आदर्श को लेकर हम उन बच्‍चों के बीच पहुंचे । जब उन्‍हें पता चला कि हम कौन हैं और क्‍यों आए हैं,तो कितने खुश हुए,कह नहीं सकता । उन आंखों की चमक देख मेरी आंखें डबडबा गई । केक कटा और इन सभी मासूम बच्‍चों ने ‘हैप्‍पी बर्थ डे’ कहा । फिर देर तक हम उन बच्‍चों से बात करते रहे । मेरा बेटा उनके हाथों का दुलारा बना रहा ।

कलक्‍टर दीक्षित इस बात से खुश हैं कि बच्‍चों के साथ गुजरे पल में उन्‍होंने कइयों में आगे बहुत दूर जाने की ललक देखी । हमने जिंदगी की बातें की । सफलता का मंत्र बताया । कुछ बच्‍चे भी आगे बढ़ गए,तो हम अपने को सफल मानेंगे । वे कहते हैं कि सरकारी स्‍तर पर भी वे जरुर देखेंगे कि इन बच्‍चों की खातिर और क्‍या किया जा सकता है ।

( वरिष्‍ठ पत्रकार ज्ञानेश्‍वर की साइट से साभार :  sampoornakranti )

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