Nitish Meets AGP leader in Patna
AGP नेताओं से बंद कमरे में नीतीश की मुलाकात, जानिये भाजपाई वर्चस्व के खिलाफ क्या है योजना

[author image=”http://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]

आज ही यानी शनिवार को नीतीश कुमार ने असम गण परिषद (AGP) के आठ सदस्यीय शिष्ट मंडल से पटना में  मुलाकात की है. इस शिष्टमंडल में असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफ्फुल कुमार महंत, असम गण परिषद के अध्यक्ष व राज्य के कृषि मंत्री अतुल बोरा समेत आठ सबसे बड़े नेता शामिल थे. याद रखने की बात है कि असम गण परिषद राज्य की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार में शामिल है.

 

AGP और जदयू दोनों NDA के वैसे घटक दल हैं जो असम में  नेशनल रजिस्टर  फॉर सिटिजेन (NRC)  पर भाजपा के घोर आलोचक रहे हैं. असम में नागरिकता के सवाल पर तो AGP  ने राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारों को यहां तक धमकी दे रखा है कि अगर अल्पसंख्यकों के नाम पर अगर बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देने का कानून बनाया गया तो वह सरकार से बाहर हो जायेगी. उधर जदयू भी पहले ही इस तरह का बयान दे कर AGP का हौसला बढ़ा चुका है.

प्रेशर पॉलिटिक्स के धुरंधर की बेबसी

दर असल नीतीश कुमार भाजपा द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए सीट शेयरिंग पर उसके रवैये से अंदर ही अंदर काफी आहत हैं. नीतीश की लाख कोशिशों के बावजूद भाजपा सीट शेयरिंग मुद्दे को ठंडे बस्ते से बाहर नहीं  निकलने दे रही है. पिछले तीन महीनों में नीतीश कुमार कई बार कह चुके हैं कि सीट शेयरिंग का मुद्दा हल हो चुका है. बस घोषणा बाकी है. घोषणा के लिए दो बार समय का भी ऐलान कर दिया गया. लेकिन दोनों बार भाजपा ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर नीतीश कुमार को झटके पर झटका ही दिया है.

 

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नीतीश कुमार की पिछले तीन महीने में सीट शेयरिंग मुद्दे पर दो बार मुलाकात हो चुकी है. एक बैठक पटना में तो दूसरी दिल्ली में. लेकिन भाजपा अपना पत्ता नहीं खोल रही है. भाजपा के इस तेवर से नीतीश कुमार के सामने ना उगलते, ना निगलते की स्थिति बनी हुई है. लिहाजा   अब वह भाजपा पर दबाव डालने के लिए  नयी रणनीति में जुट गये हैं. समझा जाता है कि पटना में AGP नेताओं के साथ नीतीश कुमार ने इसी रणनीति पर बात की है. पर मुख्यमंत्री की इस मुलाकात पर आईपीआरडी ने  मुलाकात की तस्वीर और मुलाकातियों के नाम के अलावा कोई दूसरी बात नहीं बताई है.

 

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दर असल यह नीतीशनुमा राजनीति की शैली है. वह प्रेशर पॉलिटिक्स के धुरंधर माने जाते हैं. इससे पहले प्रशांत किशोर को जदयू में शामिल कराना भी उसी रणनीति का हिस्सा था. विदित हो कि प्रशांत किशोर कभी भाजपा के प्रोफेशन चुनाव प्रचारक थे. बाद में अमित शाह से उनके रिश्ते बिगड़ गये थे.

 

नीतीश की कोशिश है कि वह एनडीए के घटक दलों के बीच किसी ऐसे मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ गोलबंद करें, जिससे भाजपा को घेरा जा सकता हो. एनआरसी का मामला भी उसी तरह का मामला है. जिसमें प्रफुल्ल कुमार का समर्थन कर वह भाजपा के विरोध एक प्रेशर ग्रूप क्रियेट कर सकते हैं. ऐसा करने से, संभव है कि नीतीश भाजपा से सीट शेयरिंग पर तोल मोल करने के स्थिति में आ जायेंगे. लेकिन इस में कितना सफल हो पायेंगे नीतीश?  दर असल नीतीश फिलहाल भाजपा के चंगुल में फंसे हैं. अब यह उनके राजनीतिक कौशल पर निर्भर है कि वह इस चंगुल से खुद को कैसे निकाल पाते हैं.

 

By Editor