‘चपरासी से बदतर’ मंत्री सहनी का गिला कैसे हुआ दूर

Madan Sahni-Nitish-kumar
मदन सहनी नहीं देंगे इस्तीफा, गिला शिकवा हुआ दूर
Naukarshahi.Com
Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com

समाज कल्याण मंत्री के इस्तीफे का शोर पानी का बुलबुला साबित हुआ. स्वाभिमान व जमीर का हवाला देने वाले मदन सहनी का क्या अब जमीर भी बच गया और स्वाभिमान भी?

एक जुलाई को जिस तरह समाज कल्याण मंत्री चीख-चीख कर कह रहे थे कि मेरी हैसियत एक चपरसाी जैसी भी नहीं है. विभाग में मेरी कोई नहीं सुनता. मैं लीडर हूं, दलाल नहीं. इसलिए इस्तीफा दे रहा हूं.

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अपनी गरिमा, अपने जमीर और अपनी हैसियत के नाम पर एक हफ्ता तक तूफान खड़ा करने वाले मदन सहनी जब सीएम नीतीश कुमार से मिले कर बाहर निकले तो उन्हीं के अनुसार उनके सारे ‘गिले-शिकवे’ दूर हो गये. उनके नेता ( नीतीश कुमार) ने उनकी गरिमा, उनका स्वाभिमान और चपरासी से बदतर रही उनकी हैसियत यानी सब की रक्षा ढाई घंटे के मुलाकात में सुनिश्चित कर दी. समाज कल्याण विभाग के जिन अपर महासचिव अतुल प्रासद के कारण मदन सहनी की हैसियत ‘चपरासी से भी बदतर’ हो गयी थी क्या उनको सजा मिली?

यह था मालमा

100 के करीब सीडीपीपीओ के तबादले को ले कर अपर महासचिव व मंत्री मदन सहनी के बीच रार थी. जिन सीडीपीओ के मामले में तबादले के नियम का उल्लंघन हो रहा था उनका तबादला न करने का अनुरोध अपर महासचिव ने किया था. इसी पर मंत्री मदन सहनी भड़क गये थे.

अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि नीतीश कुमार ने मंत्री मदन सहनी को क्या आश्वासन दिया है. क्या सीडीपीओ के ट्रांस्फर मामले में सहनी की इच्छा पूरी होगी? अगर वाकई उनकी इच्छानुसार तबादले हुए तो यह नियमों का उल्लंघन होगा. तो क्या नीतीश कुमार नियमों के उल्लंघन की शर्त पर मदन सहनी को मनाये होंगे? ऐसा नहीं लगता. तो क्या ऐसा हुआ होगा कि जिन अतुल प्रसाद के कारण मदन सहनी की हैसियत कथित तौर ‘चपरासी से भी बुरी’ हो गयी थी, उन्हें विभाग के अपरमुख्य सचिव का पद छोड़ना होगा? इसका जवाब फिलहाल मिलना मुश्किल है क्योंकि नीतीश कुमार अपने मंत्रियों से ज्यादा अपने अफसरों की गरिमा का ख्याल रखते हैं.

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आप को याद होगा कि इस्तीफा देने की घोषणा के दूसरे दिन से ही मदन सहनी अपनी बातों में लगाता कहते रहे हैं कि उनके नेता नीतीश कुमार हैं. वह नीतीश कुमार से अलग होने की कल्पना भी नहीं कर सकते. मंत्री रहें या न रहें वह नीतीश के साथ हैं और रहेंगे.

तो एक सवाल यह है कि अपने समर्थकों और मनपसंद सीडीपीओ की नजर में सहानुभूति बटोरने के लिए मदन सहनी ने इस्तीफे का सोसा छोड़ा? ताकि उन्हें लगे कि उनके हितों के लिए मंत्री ने अपनी कुर्सी तक की परवाह नहीं की?

कई सवाल हैं जिन के उत्तर आने वाले समय में मिलेंगे. जैसे यह कि मदन सहनी का गिला-शिकवा कैसे दूर हुआ. और यह भी कि अब क्या आने वाले दिनों में मदन सहनी और अतुल प्रासद साथ काम करेंगे? या अतुल प्रसाद का ट्रांस्फर कर दिया जायेगा?

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