EXCLUSSIVE- Population Policy मुसलमानों नहीं, पिछड़े हिंदुओं के लिए घातकEXCLUSSIVE- Population Policy मुसलमानों नहीं, पिछड़े हिंदुओं के लिए घातक

Exclussive-Population Policy मुसलमान नहीं, पिछड़े हिंदू के लिए घातक

EXCLUSSIVE- Population Policy मुसलमानों नहीं, पिछड़े हिंदुओं के लिए घातक
EXCLUSSIVE- Population Policy मुसलमानों नहीं, पिछड़े हिंदुओं के लिए घातक
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Irshadul Haque

अपने EXCLUSSIVE हक की बात में इर्शादुल हक बता रहे हैं कि योगी सरकार की प्रस्तावित Population Policy मुसलमानों को नहीं बल्कि एससी-एसटी समुदायों को हाशिये पर धकेलने की साजिश है.

उत्तर प्रदेश के राज्य विधि आयोग ने Population Policy को जिस दिन जारी किया उसी दिन उस पॉलिसी की धज्जी उड़ गयी और साबित हो गया कि यह मूर्खतापूर्ण दस्तावेज है.

National Family Health Survey-5 के जो ताजा आंकड़ें आये हैं उससे यूपी की योगी सरकार के विधि आयोग की प्रस्तावित Population Policy की खामियां बताती हैं कि इसके पीछे झूठ पर आधारित सियासी एजेंडा है जो मुसलमानों पर कम दलितों, आदिवासियों व एक हद तक पिछड़ी जातियों को और वंचित बनाने का प्रयास है.

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यह प्रस्तावित पॉलिसी कैसे बहुसंख्यक समाज के दलितों, पिछड़ों व आदिवासियों को हाशिये पर ढ़केलने की कोशिश है, यह जानने के लिए कुछ नवीनतम फैक्ट्स पर गौर करने की जरूरत है. हम इन फैक्ट्स पर अगली पंक्तियों में गौर करेंगे.उससे पहले संक्षेप में योगी सरकार की पापुलेशन पालिसी को जान लें. इसके तहत 2 से अधिक बच्चा पैदा करने वाले जोड़े को तमाम सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाना है. यानी उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी. स्थानीय निकायों के चुनवा नहीं लड़ सकेंगे.आदि..आदि.

मुसलमान बिल्कुल ना करें विरोध

इस प्रस्तावित पॉलिसी से सरकार और साम्प्रदायिक मीडिया यह कुप्रचार करेंगे कि मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. वे यह भी दुष्प्रचार करेंगे कि मुसलमानों को इस पालिसी से एतराज है. जबकि हकीकत यह है कि जनसंख्या वृद्धि मामले में दिलत, आदिवासी व हिंदुओं के अत्यंत पिछड़ी जातियां मुसलमानों से आगे नहीं, तो कम भी नहीं हैं. जबकि सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने के मामले में दिलत, आदिवासी ( कुल आबादी का करीब 21 प्रतिश) आरक्षण के चलते मुसलमानों से कई गुणा ज्यादा लाभ उठाती हैं. दूसरे शब्दों में मुसलमानों को बमुश्किल 5 प्रतिशत लाभ मिल पाता है. ऐसे में नयी पापुलेशन पालिसी का विरोध मुसलमानों को कत्तई नहीं करना चाहिए.

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योगी सरकार यही चाहती है कि मुसलमान विरोध करेंगे तो इससे हिंदू वोटों को एकजुट किया जा सकता है. जबकि असल हकीकत यह है कि इस पापुलेशन पॉलिसी से पिछड़े, दलित व आदिवासी सर्वाधिक मार झेलेंगे. लेकिन इन पिछड़े वर्गों में दिंदुत्व की भावना भड़काने के लिए अंदर ही अंदर यह प्रचार किया जायेगा कि जनसंख्या तो मुसलमानों की बढ़ रही है.

अब आइए जरा देखते हैं कि कैसे National Family Health Survey-5 ने योगी की पापुलेशन पॉलिसी की धज्जी उड़ा दी है.

इस सर्वे के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाले राज्यों- जम्मु कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल व असम में प्रजनन दर राष्ट्रीय प्रजनन दर 1.8 से नीचे है. जबकि 2.1 प्रजनन दर रहने पर जनसंख्या वृद्धि स्थिर हो जाती है. गोया 1.8 प्रतिशत से कम प्रजनन दर का साफ मतलब है कि जनसंख्या अब लगातार घट रही है. एक आंकड़े में बताया गया है कि भारत में हर साल स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या 2.5 करोड़ कम हो रही है.

आंकड़ों से योगी सरकार की हालत खराब

लक्ष्यद्वीप में 96 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. वहां प्रजनन दर 1.4 है.जम्मु कश्मीर में 64 प्रतिशत मुस्लिम हैं. वहां प्रजनन दर 1.4 है. असम में 34 प्रतिशत मुसलमान हैं.वहां प्रजनन दर 1.7 है. पश्चिम बंगाल में 27 प्रतिशत मुसलमान हैं. वहां प्रजनन दर 1.6 प्रतिशत है. ये तमाम प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत 1.8 से कम हैं. इससे साफ है कि मुसलमान जनसंख्या नियंत्रण में मजबूत भूमिका निभा रहे हैं. बल्कि यूं कहें कि मुसलमान, हिंदुओं से भी ज्यादा मजबूती से जनसंख्या नियंत्रण में भूमिका निभा रहे हैं.

उधर अमेरिका की प्रतिष्ठित लांसेंट पत्रिका में वॉशिंगटन युनिवर्सिटी के रिसर्च में पाया गया है कि भारत में 1950 में भारत में प्रजनन दर 5.6 प्रतिशत थी जो 2017 में गिर कर 2.14 प्रतिशत रह गयी. अगर प्रजनन दर 2.1 रहता है तो जनसंख्या में इजाफा एकदम रुक जाता है. और अगर प्रजनन दर 2.1 पर आ जाता है तो जनसंख्या घटने लगती है. लांसेट की ताजा फाइंडिंग पर गौर करें तो शीशे की तरह यह साफ हो जाता है कि असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू कश्मीर व केरल जैसे राज्य जहां मुसलमानों की आबादी सर्वाधिक ( कुल आबादी का 20 प्रतिशत से ज्यादा) है वहां मुसलमानों में प्रजनन दर 1.4 से ले कर 1.7 तक है यानी यह 2.1 से काफी कम है. इस तरह यह साफ झलकता है कि भारत में मुसलमानों की आबादी में इजाफा न सिर्फ रुक गया है बल्कि कम होना शुरू हो गया है.

इस मामले में पापुलेशन फाउंडेशन आफ इंडिया के ज्वाइंट डायेक्टर आलोक वाजपेयी का यह कथन ध्यान देने लायक है. वह कहते हैं कि जनसंख्या में इजाफा का संबंध धर्म से नहीं बल्कि शािक्षा, सामाजिक आर्थिक स्थिति और मेडिकल सुविधाओं से है.

By Editor