Rafale Deal पर एक और खुलासा: रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ने महंगे सौदे का किया था विरोध.

Rafale Deal पर लगातार घिरती जा रही मोदी सरकार में एक और हाहाकार मचाने वाली खबर है. राफेल इससौदेबाजी के लिए गठित कंट्रेक्ट निगोसिएशन कमेटी (CNC) के सदस्य व रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने राफेल विमान की बढ़ी हुई कीमत के खिलाफ लिखित विरोध दर्ज किया था. इसके बाद मोदी सरकार ने उस विरोध की परवाह किये बिना सौदे को अंतिम रूप दे दया था.

Rafale Deal से संधित रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी के इस विरोध के बारे में खुलासा इंडियन एक्सप्रेस ने किया है. अखबार ने अपने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि वह अधिकारी उस समय रक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव पद पर थे और CNC के सदस्य थे. इंडियन एक्सप्रेस ने यहां तक दावा किया है कि उस अधिकारी द्वारा 36 लडाकु विमान की बढ़ी हुई बेंचमार्क कीमत के खिलाफ लिखित आपत्ति जताने के कारण इस समझौते में विलम्ब भी हुआ था लेकिन बाद में उनके विरोध को रक्षा मंत्रालय के ही एक अन्य अधिकारी द्वारा अवरूल्ड कर दिया और फिर राफेल सौदे पर दस्तखत हुए.

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मालूम हो कि इस मामले की पड़ताल अब नियंत्रक व महालेखा परीक्षक( सीएजी) के स्तर पर भी की जा रही है. समझा जाता है कि सीएजी  इस संबंध में अपनी रिपोर्ट संसद में शीतकालीन सत्र में पेश करेगा.

 

इस मामले में लगातार कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष सवाल उठा रहा है कि पूर्व की सरकार ने 126 राफेल विमान खरीदने का समझौता फ्रांस से किया था. जिसकी कीमत प्रत्येक हवाई जहाज 520 करोड़ रुपये थी. लेकिन उस सौदे को रद्द करके मोदी सरकार ने 36 विमान की खरीद की और नये समझौते के अनुसरा एक हवाई जहाज की कीमत 520 करोड़ से बढ़ा कर 1600 करोड़ कर दी गयी.

इस बीच फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि राफेल समझौते में आफसेट पार्टनर के तौर पर रिलायंस डिफेंस नामक कम्पनी का नाम भारत सरकार ने सुझाया था. इस मामले में आफसेट पार्टनर चुनने का कोई और विकल्प था ही नहीं. उधर राहुल गांधी लगातार सवाल उठाते रहे है कि पिछले सत्तर सालों से विमान बनाने वाली सरकारी क्षेत्र की कम्पनी हिंदुस्तान एयरोनोटिक्लस लिमिटेड( एचएएल) को इस सौदे से अचानक हटा कर रिलायंस डिफेंस नामक कम्पनी को रातों रात सौदे का हिस्सा बना दिया गया. जिससे उस कम्पनी की झोली में 30 हजार करोड़ रुपये चले जायेंगे, जो कि एक महा घोटाला है.

 

रिलायंस डिफेंस, अनिल अम्बानी की कम्पनी है जिसे राफेल सौदे पर दस्खत करने से महज दस दिन पहले बनाया गया था.

 

अब इस नये खुलासे के बाद मोदी सरकार की फजीहत और बढ़ने वाली है. अभी तक इस मामले में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी तरफ से इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. जबकि मौजूदा रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण जो, पहले इस समझौते के तहत विमान की कीमत बताने का वादा करके मुकर गयीं. अब वह  यह कह रही हैं कि यह एक गुप्त समझौता है जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता

By Editor