उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने पिछले चार दशकों से देश की राजनीति पर छाये रहे अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में एकमत से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सरकार को विवादित भूमि पर राम मंदिर बनाने के लिए एक न्यास का गठन करने और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक भूमि आवंटित करने का आदेश दिया।

देश भर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और चाक चौबंद इंतजामों के बीच सुनाये गये इस फैसले से दशकों से चले आ रहे विवाद के समाधान के साथ विवादित स्थल पर राम मंदिर तथा वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया। इस मामले के हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों और दोनों समुदाय के संगठनों ने आमतौर पर इसका स्वागत किया है। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने भी फैसले को देश की एकता, अखंडता और संस्कृति को मजबूत करने वाला बताया है।

देश के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गत 6 अगस्त से मामले की लगातार 40 दिन तक सुनवाई के बाद गत 16 अक्टूबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे , न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे।

पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विवादित भूमि को तीन बराबर भागों में बांटने के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार समूची 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर राम मंदिर बनाने के लिए तीन से चार महीने में एक न्यास का गठन करे और उसके प्रबंधन तथा आवश्यक तैयारियों की व्यवस्था करे। गर्भगृह और मंदिर का बाहरी अहाता भी न्यास मंडल को सौंपा जाये। फैसले में कहा गया है कि निर्मोही अखाड़े को केन्द्र सरकार द्वारा मंदिर के निर्माण के लिए बनाये जाने वाले न्यास में उचित प्रतिनिधित्व दिया जाये। पीठ ने कहा कि नये न्यास के गठन तक विवादित भूमि का कब्जा सरकार द्वारा नियुक्त रिसिवर के पास ही रहेगा। न्यायालय ने साथ ही कहा कि 06 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का गिराया जाना “गैरकानूनी” था तथा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिये थी।

आदेश में कहा गया है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही पांच एकड़ वैकल्पिक जमीन उपलब्ध करायी जाये। न्यायालय ने कहा कि यह जमीन 1993 में केन्द्र सरकार द्वारा अधिगृहीत भूमि में दी जा सकती है या राज्य सरकार इसके लिए अलग से प्रमुख स्थान पर अलग से भूमि आवंटित कर सकती है। केन्द्र और राज्य सरकार परस्पर विचार विमर्श के आधार पर निर्धारित समय में इस जमीन को आवंटित करे। अदालत ने कहा कि जमीन आवंटित किये जाने पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड मस्जिद बनाने के लिए सभी जरूरी कदम उठा सकती है।

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