बहुचर्चित अरबों रुपये के सृजन घोटाले के दसवें मामले में दाखिल किये गये आरोप-पत्र में भी भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धाराएं जोड़ी गई हैं एवं कई सरकारी कर्मचारियों को आरोपी बनाया गया है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने विशेष न्यायाधीश कुमार गुंजन की अदालत में कल यह आरोप-पत्र भारतीय दंड विधान की अलग-अलग धाराओं के अलावा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की विभिन्न धाराओं के साथ दाखिल किया है।

ब्यूरो ने आरोप-पत्र में भागलपुर जिला नजारत और दो राष्ट्रीयकृत बैंक के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को इस मामले में आरापी बनाया है। आरोपियों में बैंक ऑफ बड़ौदा की भागलपुर शाखा के तत्कालीन मुख्य प्रबंधक नवीन कुमार साहा के अलावा प्रबंधक वरुण कुमार, अधिकारी अतुल रमण तथा सरफराजुद्दीन एवं लिपिक संत कुमार सिन्हा शामिल हैं वहीं दूसरी ओर बैंक ऑफ इंडिया की सबौर शाखा के तत्कालीन प्रबंधक दिलीप कुमार ठाकुर और ज्ञानेंद्र कुमार के अलावा एन. वी. राजू एवं वंशीधर झा भी आरोपित हैं।

 

ब्यूरो ने इस मामले में सृजन महिला विकास सहयोग समिति की सचिव रजनी प्रिया, प्रबंधक सरिता झा को भी आरोपी बनाया है तो मुख्य संरक्षक मनोरमा देवी का नाम आरोपितों में शामिल करते हुये उन्हें मृत आरोपी की श्रेणी में नामित किया गया है।

इनके अलावा भागलपुर जिला नजारत के तत्कालीन नाजिर अमरेंद्र कुमार यादव भी इस मामले में आरोपित हैं। कुल 12 लोगों के खिलाफ भारतीय दंड विधान के अलावा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धाराओं के तहत आरोपी बनाया गया है।

सृजन घोटाले का यह मुख्य मामला भागलपुर कोतवाली थाने में दर्ज किया गया था। बाद में इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। दसवां मामला 25 करोड़ 54 लाख 89 हजार 839 रुपये की सरकारी राशि के घोटाले का है। आरोप-पत्र के अनुसार, एक आपराधिक षड्यंत्र के तहत सरकारी कर्मचारियों ने सृजन संस्था और अन्य लोगों के साथ मिलकर महिला सशक्तीकरण एवं सुदृढ़ीकरण की सरकारी योजनाओं के नाम पर सरकारी राशि का गबन किया है।

इस मामले की विशेष बात यह है कि आरोपियों ने भागलपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी का फर्जी हस्ताक्षर कर चार चेक के माध्यम से उक्त राशि का ट्रांसफर सृजन महिला विकास सहयोग समिति के खाते में कर दिया था। इस प्रक्रिया में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के तमाम मानकों की अवहेलना भी की गई थी।

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