UP Election: तो असेंबली में मुस्लिमों की संख्या बढ़ने की है गारंटी

UP Election: तो असेंबली में मुस्लिमों की संख्या बढ़ने की है गारंटी

Irshadul Haque अपने विश्लेषण में बता रहै हैं कि 2022 UP Election में सरकार चाहे जिसकी बने, एक बात तय है कि असेम्बली में मुसलमानों की संख्या बढ़ेगी.

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Irshadul Haque

UP भारत का वह राज्य है जहां देश के सर्वाधिक मुसलमान रहते हैं. 2012 तक विधान सभा में चुन कर आने वालों की संख्या भी अच्छी खासी थी. लेकिन 2017 में तो गजब हो गया. 403 सीटों वाली विधान सभा में महज 25 मुस्लिम विधायक चुन कर आये थे.

20 प्रतिशत आबादी वाले राज्य में कम से कम 100 मुस्लिम विधायक चुने जाने चाहिए लेकिन मात्र 25 मुसलमान विधायक चुने जाने से साफ है कि राज्य में मुसलमानों की हैसियत महज वोट देने वाले की रह गयी थी.

जब-जब हिंदुत्व व फर्जी राष्ट्रवाद की धारा कमजोर होगी तब हाशिये पर पड़े समाज के साथ मुसमानों की हिस्सेदारी सियासत में बढ़ना तय है.

ऐसे में इस बार यानी 2022 में क्या होगा, यह समझना जरूरी है. आंकड़ों के आईने में देखें 2012 में 64 मुस्लिम उम्मीदवार चुन कर आये थे. हालांकि यह संख्या भी उनकी आबादी के अनुपात 20 प्रतिशत से कम थी लेकिन 2017 में तो हद हो गयी. इस बार 2022 UP Election के असेम्बली में उनकी नुमाइंदगी घट कर करीब साढे पांच प्रतिशत रह गयी.

किसने दिया था कितना टिकट

मुसमलानो को टिकट देने के मामले में बहुजन समाज पार्टी BSP सबसे अधिक दिलेरी दिखाती रही है. उसने 2017 में मुसलमानों को सर्वाधिक 97 टिकट दिया था. लेकिन पार्टी ने ऑवर ऑल काफी बुरा प्रदर्शन किया. इस कारण 97 मुस्लिम उम्मीदवारों में महज 5 जीतने में कामयाब हो सके थे.

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जहां तक बात समाजवादी पार्टी SP की थी तो उसका कांग्रेस से गठबंधन था. उसने 67 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. इनमें से 17 को जीत मिली थी. यानी सकसेसे रेट 25 प्रतिशत रही. पार्टी द्वारा कुल प्रदर्शन के लिहाज से यह बहुत बड़ी सफलता थी. लेकिन जिस तरह से मुसलमानों ने वोटिंग की उससे लगता है कि उन्होंने भाजपा को हराने के लिए सपा पर भरोसा किया और बसपा BSP को नकार दिया. ऐसे में उन्होंने बसपा के 97 में से 92 मुस्लिम उम्मीदवारों को भी ज्यादा समर्थन नहीं किया.

जहां तक भारतीय जनता पार्टी की बात है ति उसे पहली बार उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को पूर्णरूप से माइनस कर दिया. 2017 के चुनाव में भाजपा ने एक भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया. हालांकि बाद में भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने स्वीकार किया कि पार्टी को ऐसा नहीं करना चाहिए था.

हालांकि इस बार भारतीय जनता पार्टी का हिंदुत्व कार्ड भरभरा कर गिरता जा रहा है. पिछड़े और दलित वर्ग के कम से कम 14 विधायक भाजपा छोड़ चुके हैं. ऐसे में भाजपा के ऊपर इसबार दबाव है कि मुसलमानों को कम से कम चालीस टिकट दिया जाये. पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने आलाकमान से इस संबंध में अपील भी की है. उन्होंने वैसी चालीस सीटों को चिन्हित भी किया है.

गैलतब है कि उत्तर प्रदेश में चालीस सीटें ऐसी हैं जहां 60 से 70 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं.

इसबार क्या होगा

समाज वादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा के साथ इस बार एआईएमआईएम मजबूती से चुनाव लड़ रही हैं. सपा के साथ कम से कम 5 छोटे दलों ने समझौता किया है. इन दलों का मुख्य जनाधार दलित, अतिपिछड़े, पिछड़े और मुसमलान हैं. ऐसे में इन दलों पर दबाव होगा कि मुस्लिम नुमाइंदगी बढ़े. उधर भाजपा 2017 के इतिहास को दोहराने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उसे पता चल चुका है कि उसका हिंदुत्व कार्ड कमजोर हो चुका है. ऐसे में न चाह कर भी उसे मुस्लिम उम्मीदावर उतारना पड़ेगा, भले ही सांकेतिक तौर पर क्यों न हो.

उधर असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के चुनावी समर में कूदने से गैरभाजपाई दलों पर दबाव होगा कि वे मुसलमानों की नुमाइंदगी के साथ ज्यादा बहानेबाजी नहीं कर सकते. ऐसे में इस बार का माहौल मुस्लिम नुमाइंदगी के लिए काफी हद तक सकारात्मक लग रहा है.

By Editor