रक्षा बंधन तेज-तेजस्वी के बीच सद्भाव का बेहतरीन अवसर

तेजप्रताप यादव व तेजस्वी यादव के सियासी घमासान में यह रक्षा बंधन सद्भाव का एक बेहतरीन अवसर साबित हो सकता है. तेज ब्रदर्स के बीच बढ़ी खाई को बहनें पाटने में जुटी हैं.

रक्षा बंधन तेज ब्रदर्स के बीच सद्भाव का बेहतरीन अवसर

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Irshadul Haque

दोनों भाइयों के बीच मचे सियासी घमासान में रक्षा बंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में सामने है. तेज ब्रदर्स फिलवक्त दिल्ली एनसीआर में हैं. वहां उनकी छह बहनें रहती हैं. पिता लालू प्रसाद भी वहीं हैं. अपनी बहनों से राखी बंधवाने के क्रम में सूचना है कि दोनों के बीच सुलह की चौतरफा कोशिश होगी.

याद दिला दें कि दोनों भाइयों के बीच मतभेद तब शुरू हुआ था जब तेज प्रताप पार्टी कार्यालय में एक कार्यक्रम करने गये थे. तब कार्यालय में उन्होंने अपनी अवहेलना महसूस की. इस पर तेज प्रताप ने प्रदेश अध्यक्ष को हिटलर कहा था. बाद प्रदेश अध्यक्ष जग्दानंद सिंह ने तेज प्रताप के चहेते आकाश यादव को छात्र राजद के प्रदेश अध्यक्ष से हटा कर गगन कुमार को पदभार सौंप दिया. विवाद की सारी जड़ वहीं शुरू हुई जो बाद में तेज द्वारा तेज्सवी के सलाहकार संजय यादव की आलोचना तक पहुंची.

दर असल तेज प्रताप बड़े भाई के रूप में अपना सम्मान चाहते हैं. लेकिन पार्टी किसी भी कीमत पर डिसिपिलीन चाहती है. तेज-तेजस्वी की बहनों के बारे में खबर है कि वे तेज प्रताप को मनाने में लगी हैं कि पार्टी के अंदर पारिवारिक रिश्ते को तरजीह नहीं दी जा सकती. यहां एक शक्तिकेंद्र का होना जरूरी है. उधर लालू भी तेज प्रताप को नसीहत देने में लगे हैं.

भगवान कृष्ण के चरित्र के विपरीत कार्य कर रहे तेजप्रताप

तेज प्रताप हर बात को सार्वजनिक करके खुद को हलका और कमजोर साबित करने की गलती कर बैठते हैं. इससे उनका तो नुकसान होता ही है, पार्टी की सेहत पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. समय समय पर तेज प्रताप के इस व्यवहार से अनेक बार नुकसान हुआ है और आलोचकों को बोलने का अवसर मिला है.

वैसे तेजप्रताप का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि वह भावुक हैं. तभी तो भाई तेजस्वी को सत्ता सौंप कर खद जंगल में चले जाने की बात करते हैं. उन्हें पता है कि दो भाइयों के खीचतान से पार्टी को हानि होती है.

लेकिन राजद के शुभचिंतकों को भरोसा है कि दोनों भाइयों के बीच यह रक्षा बंधन सद्भाव के नये द्वार खोलेगा. हालांकि यह भी माना जा रहा है कि तेज प्रताप के सख्त रवैये अगर नहीं बदले तो संगठन बंचाने के लिए लालू को बड़ा फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ेगा.

By Editor