तेजस्वी ने नीतीश को उनके सियासी जीवन के सबसे कठिन पेंच में फंसाया

नीतीश कुमार 16 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं। उन्हें पहली बार तेजस्वी ने बेहद कठिन पेंच में फंसा दिया है। मंत्री रामसूरत राय को हटाएं, तो गए और ना हटाएं, तो भी जाएंगे। कैसे?

कुमार अनिल

आज सुबह नौ बजे फिर तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इतनी सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं होती। ऐसा तभी होता है, जब आप आत्मविश्वास से भरे हों। तेजस्वी का आत्मविश्वास कोई देख-समझ सकता है। आज सुबह उन्होंने फिर नीतीश कुमार को खुली चुनौती दी। कहा, अगर मंत्री रामसूरत राय को एक अप्रैल तक बर्खास्त नहीं किया गया, तो मुख्यमंत्री का घेराव किया जाएगा।

23 मार्च को युवा राजद बेरोजगारी, महंगाई के खिलाफ पटना में मार्च निकालने की घोषणा कर चुका है। इस बीच तेजस्वी ने कह दिया है कि मंत्री के भाई की गिरफ्तारी हो। मंत्री के भांजे का भी नाम है, उसकी भी गिरफ्तारी हो। जाहिर है, 23 मार्च को अब प्रमुख नारा मंत्री को हटाने, मंत्री के भाई की गिरफ्तारी होगा।

नीतीश कुमार 16 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं। उनके सामने कई बार मुश्किलें आई हैं, लेकिन विपक्ष की रणनीति और आक्रामकता के कारण पहली बार वे इस तरह के कठिन पेंच में फंसे हैं।

अगर शराब मामले में मंत्री से इस्तीफा मांगते हैं, तो उनकी सरकार रहेगी या जाएगी, कहा नहीं जा सकता, क्योंकि भाजपा मंत्री के बचाव में खड़ी है। अगर वे भाजपा को नाराज नहीं करने का निर्णय लेते हैं, तो विपक्ष उन्हें स्थिर रहने नहीं देगा।

एक बात नोट करनेवाली हैं कि मुख्यमंत्री अपने मंत्री रामसूरत राय से इस्तीफा दिलवाने में जितनी देर करेंगे, उतनी उनकी प्रतिष्ठा गिरेगी। तेजस्वी के हर प्रेस कॉन्फ्रेंस से मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा कम हो रही है।

जो लोग आंदोलनों का डायनेमिक्स समझते हैं, उन्हें मालूम है कि जब चारों तरफ असंतोष हो, तो कोई एक मुद्दा ऐसा बन जाता है, जो रैलिंग प्वाइंट बन जाता है। सारे नाराज ग्रुप, सारे छिटपुट आंदोलन उसी बड़े मुद्दे से जुड़कर अपनी अभिव्यक्ति करने लगते हैं। 1974 में भी शिक्षा मंत्री से इस्तीफा का सवाल बढ़ते-बढ़ते कांग्रेस विरोधी आंदोलन में तब्दील हो गया था।

इसका अर्थ है मंत्री से इस्तीफा लेने में मुख्यमंत्री जितनी देर करेंगे, आंदोलन का उतना ही विस्तार होता जाएगा, जो अंततः उनकी सत्ता के लिए खतरा बन जाएगा। इसे ही कहते हैं कैच-22 सिचुएशन।

तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इसी कठिन स्थिति में फंसा दिया है। प्रतिष्ठा बचानी है, तो मंत्री को हटाना पड़ेगा और मंत्री को हटाते हैं, तो सत्ता जा सकती है और सत्ता बचाते हैं, तो प्रतिष्ठा जाएगी।

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