महाराष्ट्र के पुणे जिले में भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिराह के दौरान हुई हिंसा की आग मुंबई समेत राज्य के कई शहरों में फैल गई. इस घटना पर बिहार के पूर्व उपमुख्‍यमंत्री और युवा राजद नेता तेजस्‍वी यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि भीम कोरेगाँव का दंगा दक्षिणपंथी ताक़तों द्वारा प्रायोजित था. पिछड़े-दलित जब-जब अपने इतिहास के शौर्य के काल खंड का स्मरण करना चाहते है तो इन्हें नागवार गुज़रता है.

नौकरशाही डेस्‍क

तेजस्‍वी ने भाजपा और आरएसएस को दलित विरोधी बताते हुए अपने ट्विटर पर लिखा कि रोहित वेमुला, सहारनपुर, ऊना और अब भीम कोरेगाँव में उत्पीड़न इस बात का साफ़ संकेत है कि मनुवादियों को सिर्फ़ दलितों के वोट से मतलब है ना कि उनकी हिस्सेदारी और सम्मान के मसलों से. उन्‍होंने एक अन्‍य ट्विट में लिखा कि भीम कोरेगाँव घटना ने एक बार फिर हमारे जाति व्यवस्था की क्रूर वास्तविकता का पर्दाफाश किया है. जब हमारे दलित भाई इतिहास के गौरवशाली भाग को याद करने के लिए इकट्ठा होते हैं, तो यह भाजपा / आरएसएस उनकी मानुवादी और फासीवाद राजनीति को खतरा मानते हैं.

गौरतलब है कि 63 साल के भारिप बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश अंबेडकर द्वारा घोषित किए गए बंद के आह्वान को 250 से अधिक दलित संगठनों का समर्थन था.  इस बंद के दौरान जगह-जगह हिंसक प्रदर्शन हुए. पुणे से शुरू हुई हिंसा की आग अब महाराष्ट्र के 18 जिलों तक फैली जिसका असर आम जन-जीवन पर पड़ रहा है. प्रशासन ने ठाणे में 4 जनवरी तक धारा 144 लगा रखी है.

उधर, भारिप बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश अंबेडकर ने आज कहा कि भीमा कोरेगांव लड़ाई के स्मृति कार्यक्रम के खिलाफ हुई हिंसा के विरोध में विभिन्न दलित एवं अन्य संगठनों द्वारा बुलाया गया दिनभर का महाराष्ट्र बंद वापस ले लिया गया है. इसमें राज्य की करीब 50 फीसद लोगों ने इस बंद में हिस्सा लिया. वहीं, हिंसा के मद्देनजर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस ने मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं और हिंसा में मारे गए युवक के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा.

दरअसल, वर्ष 1818 में हुआ भीमा-कोरेगांव युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी तथा तथाकथित सवर्ण पेशवा सैनिकों के बीच हुआ था, जिसमें पेशवाओं की हार हुई थी. दलित इसी युद्ध की वर्षगांठ को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं. जीत के स्मरण में विजय स्तंभ का निर्माण कराया था, जो दलितों का प्रतीक बन गया. हर साल 1 जनवरी को हजारों दलित लोग श्रद्धाजंलि देने यहां आते हैं.

 

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